Menu
blogid : 21361 postid : 883526

ऐसे घर के रखवालों को

चंद लहरें
चंद लहरें
  • 180 Posts
  • 343 Comments

अत्याचार,
यह महा अनर्थ है
नैतिकता को आश्रय देना
अनाचार पर प्रश्न उठाना
ईंटों से अब मार है खाना
नियमों के संरक्षक हैं जो
नियम तोड़ने को वे तत्पर
कानूनों के प्रतिपालन का
प्रण लेते, भत्ते लेते हैं
सड़क बीच औ, सरे आम
तोड़ नियम मनमानी करते
सहृदयता से दूर वे कितने
नारी का सम्मान न करते,
ईर्ष्या औ हिंसा के पुतले
क्या इनसे उम्मीद करें हम
रक्षक नहीं भक्षक हैं वे तो

माना कोई भूल हुई हो
हो सकता अनजान रही हो
राह बताना नियम बताना
मानवता का धर्म नहीं क्या

ऐसे घर के रखवाले को
किन नजरों से देखे जनता
रिश्वत लेना धर्म है उनका।
रिश्वत का विरोध कर सके
किसमें इतनी शक्ति शेष है
इक नारी ही है वह शक्ति
विद्रोही स्वर जाग्रत उसका
तेजस्विनी वह,
सहनशक्ति की पराकाष्ठा,
ईंटों की वह मार भी सहती
फिर भी वह विरोध है करती
अत्याचार औ इस अनर्थ का
किस तरह प्रतिकार भला हो
है सुचिन्त्य विषय यह सबका
जन-जन को है जाग्रत होना
जन-जन को प्रतिकार है करना।

आशा सहाय—11-5-2015

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh