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जैसा मैने देखा

चंद लहरें
चंद लहरें
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दिनांक 03-06-2015,नौ बजे पूर्वाह्न मैने भारत की धरती के पुनः दर्शन किये।अपनी जमीन पर पहुँचने के एहसास ने स्वतः ही निश्चिन्तता के भाव भरने आरम्भ कर दिये।अपने देश को देखा,उसकी भीड़-भाड़ ,वाहनों का अविरल प्रवाह,आगे बढ़ निकलने की जद्दोजहद, एक दूसरे पर की जानेवाली टिप्पणियाँ, आरोप प्रत्यारोप; लगता है सब भूल गया था । मस्तिष्क के किसी कोने मे तुलनात्मक समीक्षा के भाव स्वतः ही उत्पन्न होने लगे। वातावरण की धक्कामुक्की ने विकास की ओर बढ़ते,खुद से संघर्ष करते जीवन की भागमभाग का संकेत देते हुए मानवीय जीवन्तता का परिचय देना पुनः आरंभ कर दिया।
नैरोबी और उसके आसपास के क्षेत्र की शान्ति और भारत की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर बिखरा कोलाहल—कहीं कोई तुलना ही नहीं।लगा,जैसे-भरपूर जीवन यहीं है।मन अगर अनुशासित हो,तो यह चहल पहल विकास की तीव्र गति का ही परिचायक है।
केन्या—पशुओं,पक्षियों, वृक्षों, जँगलों का देश,जहाँ शेष विश्व ने विकास के चरण पसारने आरम्भ कर दिये हैं; जनसंख्या अगर घनी नहीं हुई तो विकास के ये चरण उन्हें काफी उन्नत स्थिति तक पहुँचा देंगे।
अब वहाँ की यादें स्मृति पटल पर पुनः छाने लगी हैं । यहाँ आने से पूर्व मैने और जो कुछ अनुभव किया,उसमें साबो (Tsavo)सरकारी संरक्षित वन्य प्रदेश का अनन्त विस्तार याद आता है। सावो नेशनल पार्क विश्व का सबसे बड़ा नेशनल पार्क माना जाता है।कहीं कोई अन्त ही नहीं । अन्तहीन हरी घास का फैलाव –बीच बीच में ऊँचे-ऊँचे वृक्ष ,बाउ बाउ वृक्ष जिसकेअत्यधिक मोटे तने में; कहा जाता है कि पानी भरा होता है। मानव कल्याण के लिए प्रकृति का विस्मयकारक वरदान ! काँटो से भरी अकेशिया, झाड़ वे जो भारत में भी बहुतायत में उपलब्घ हैं पर वहाँ उनका विकसित स्वरूप देखने योग्य है।आम के बड़े –बड़े फलों के आकार के आक के फल मैने तो नहीं देखे यहाँ। सब वहाँ की जलवायु की दुहाई देते हुए प्रतीत हो रहे थे।दूर –दूर तक सम्पूर्ण वन्यक्षेत्र पहाड़ों से भरा दृष्टिगत हो रहा था। एक विचित्र प्रकार के पत्थरों ने ध्यान आकर्षित किया जो रास्ते के दोनो ओर सजावट के लिए रखे से प्रतीत हो रहे थे। जैसे –जैसे आगे हम बढ़ते गये, सम्पूर्ण क्षेत्र में छितराये हुए से दीखे।
स्पंज की तरह बड़े बड़े छिद्र वाले ये पत्थर अब कॉटेजों,लॉजों को अपनी शोभा से अलंकृत कर रहे थे। और आगे जाने पर एक विशेष पर्वत के एक छोर से प्रवाहित होते हुए ,पूरे मार्ग को आच्छादित करते हुए जाने कितने किलोमीटरों तक वे फैले हुए दीखे।मैं चकित हो गई। गाइड ने बताया कि वह पर्वत ज्वालामुखी है और ये विशेष प्रकार के पत्थर उससे प्रवाहित लावा।
मैं स्तब्थ हो गई। पढ़ा था, सुना था कि ज्वालामुखी के विस्फोट से बड़ी बड़ी सभ्यताएँ दब गई हैं,नष्ट हो गई हैं।महान विसूवियस के विस्फोट से दबे मिनोन के भयाक्रान्तलोगों के दबे घुटे लाशों का हाल में ही प्राप्त हुआ साक्ष्य और महान पूर्ण विकसित एटलांटिस की सभ्यता का कथा कहानियों में जीवित रह जाना,कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं। आदिकाल से जाने कितनी ही सभ्यताएँ इस प्रकार ध्वस्त हुई होंगी।
उस विस्फोट का एक अत्यन्त लघु दृश्य देखकर उस महाकाल की महालीला का सहज अनुमान किया जा सकता था। क्रेटर का दर्शन दूर से ही कर सकी।विदित हुआ कि ये सारी पर्वत श्रृंखलाएँ इन्हीं लावों से निर्मित हैं।
इस प्रवाहित लावे के मध्य से निकाले गए मार्ग से हम आगे बढ़ते हुए हम एक झील तक पहुँचे।झरने से बने इस झील की व्यथा कथा भी इन लावों के अत्याचार की कथा ही है। लावों ने ही झरने के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया था।प्रकृति की लीला कहूँ या कि धरती का क्रोध।उस विशेष भूमि के सरल मन निवासी जीवों ,वनस्पतियों पर क्रोध कैसा! यह अनिवार्य प्राकृतिक भौगोलिक घटना जिसकी व्याख्या भूगर्भ शास्त्र ही करता रहा है हम सरल मन लोगों के लिए धरती का विस्मयकारक शक्ति प्रदर्शन ही तो है।
विविध प्रकार के पक्षी,वन्य जन्तु बहुत दीखे पर मसाईमारा कीतरह अधिसंख्यक गणनाओं में नहीं।या स्यात् इनकीबहुलता वाली जगहं में हम पहुँच नहीं पाये।शेर वहाँ के मानवभक्षी हो गए हैं।इसके पीछे भी वहाँ के आदि निवासियों की वह जघन्य संघर्षकथा है कि पराजितों को वे यहीं शेरों के आगे फेंक दिया करते थे।
वहाँ से लौटते समय किलिमंजारो पर्वत के दर्शन किये। भूमध्येखा के इतने करीब होते हुए भीउसपर सालों भर बर्फ जमी रहती है। उपर से नीचे लटकती माला की लड़ियों सी जमी बर्फ के दर्शन दूर से हम कर सके। सबसे ऊँची पर्वतमाला को देखकर खुशी हुई।
सुन्दर प्राकृतिक दृश्यो ने मन को अवश्य मुग्ध किया था पर अपनी भारत भूमि पर आकर मिली शान्ति ने जो आनन्द का एहसास दिया वह अतुलनीय ही है।

आशा सहाय -7-6-2015

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