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स्वच्छता—एक जीवन द़ृष्टि

चंद लहरें
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बार-बार प्रधानमंत्री की राजनैतिक एवं सामाजिक स्तर पर स्वच्छता अभियान की बातें सुन उनकी प्रतिक्रियाओं की ओर स्वतः ही ध्यान आकृष्ट होना स्वाभाविक है। स्वच्छता का जीवन में अनिवार्य महत्व है।शारीरिक और मानसिक पवित्रता की बातें हर जातिधर्म औरहर स्थान मेंसमान रूप से विकास पाती रही हैं।प्रतीकात्मक रूप से हर धार्मिक क्रिया कलापों में पवित्रता और शुद्धता का ध्यान रखा ही जाता है। हाँ,उन सबोंके स्वच्छता और पवित्रता के मानदंड उनकेमूल उद्गम स्थान औरतद्जनित प्राप्त सुविधाओं के अनुसार भिन्न भिन्न अवश्य हो सकते हैं। पर काल क्रम से सभी विकसित जातियो और समुदायों ने स्वचछता की अब समान परिभाषाएँ निश्चित कर ही ली हैं जो स्वास्थ्य ,पर्यावरण और प्रदूषण निवारण की दृष्टि से अत्यंत समीचीन प्रतीत हुई हैं। हमारे देश की विराट् जनसंख्या को देखते हुए यह एक बड़ी चुनौती अवश्य है। और इस दृष्टि से हमारे प्रधान मंत्री का लीक से हटकर भी इस पर बार बार बल देना उपयुक्त ही प्रतीत होता है।
पर इस आह्वान को सक्रियता प्रदान करने के लिए जिन प्रयासों का सहारा लिया गया,यथा राजनैतिक स्तर पर,नेताओं का झाड़ू उठाना,आह्वान पर कुछ प्रबुद्ध वर्गों द्वारा झाड़ू उठाना,चाटुकारिता और प्रतियोगिता में पीछे न रह जाने की प्रवृति में लोगों का झाड़ू उठाना, मीडिया की दृष्टिक्षेत्र में निरंतर बने रहने का प्रयास आदि,वास्तविक उपलब्धियों से अधिक हास्य की सृष्टि ही अधिक करता हुआ प्रतीत हुआ ।
आसपास की हर वह गंदी जगह याजगहें जहाँ स्थानीय कचरा जमा है अथवा था,ढेरों सड़ी गली चीजें दुर्गंध फैला रही हैं,नाले सड़ी बदबू सेआस पास की हवा को प्रदूषित कर रही हैं,वहाँ क्या इन राजनेताओं,अभिनेताओं या कुछ क्षणिक उत्तेजना से उद्बुद्ध लोगों के द्वारा सम्पूर्ण सफाई कर दी जा सकेगी? अभियान को मन –प्राण में बसाये बिना तो यह संभव नहीं दिखता।
यकीनन प्रधान मंत्री का इस अभियान में झाड़ू लेकर सम्मिलित होकर प्रेरणादायक उदाहरण पेश करना एक अच्छा कदम तो अवश्य लगा ,पर यह प्रयास भी भारत जैसे विशाल और भिन्न-भिन्न मानसिकता वाले देश को कोई स्थायी प्रेरणा देने मेंसमर्थ नहीं हो सकेगा ।
राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर उठाये जा रहे कदम अवश्य प्रभावी होंगे।विभिन्न संस्थाओं यथा यू.जी. सी ने सभी विशवविद्यालयों और सम्बद्ध कॉलेजों में परिसर कार्यालयों,शौचालयों आसपास केक्षेत्र ,वाहनोंफाइलों रिकॉर्डों आदि की सफाई का आदेश दिया है, इस प्रकार के कदमों की तो आवश्यकता है ही,पर इन आदेशों का उतने ही जोश-खरोश से अनुपालन भी हो तो !
खुद इस अभियान में भाग लेने एवं नौ अन्य लोगों को इसके लिए चैलेंज करें ;यहअभियान का सकारात्मक कदम हो सकता है,पर इस चुनौती पर अमल करनेवाले हमारे देश के सदैव व्यंगात्मक नजरिये से हर कार्यक्रम को देखने वाले लोगों से कितनी उम्मीद की जा सकती है ?
सेलफी के जरिये अपने आपको प्रकाशित करने का लोभ अवश्य कुछ लोगों को होगा पर अभियान के प्रति गम्भीरता इससे कभी भी लक्षित नहीं होगी।
तब एक ठोस कार्यक्रम की सरकारी अथवा गैर सरकारी स्तर पर सर्वत्र आवश्यकता है।अस्पतालों को ही लें जो स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी हुआ करता है,वहाँ सफाई की व्यवस्था के मानदंड उनकी आर्थिक स्थिति की मुहताज हुआ करती है ।बड़े शहरों एवं निजी अस्पतालों में सफाई की व्यवस्था चिकित्सा मद में बड़े एव् धनी मानी रोगियों से लिये गए पैसों के बल पर होती है। वहाँ सफाई का चाकचक्य भी लोगो को इलाज कराने को प्रेरित करता है पर अन्य अस्पतालों का स्तर निश्चय ही मुकाबले का नहीं होता।वहँ सरकार की निष्क्रियता,असंवेदनशीलता दिखाई पड़ती है। राजनीति में फँसी इन संस्थाओं को पूरे मन से स्वच्छता कार्यक्रम की ओर अनुप्रेरित करने की आवश्यकता है।यह तो हुई बड़े बड़े शहरों की बात। छोटे शहरों,ग्रामीण स्तर पर बने चिकित्सालयों पर कभी दृष्टि डालने पर सफाई से सम्बन्धित असंवेदनशीलता प्रत्यक्ष हो जाती है।जबकि स्वच्छता के पूर्ण मानदंडों पर खरा उतरने के लिए उन्हें अधिक प्रेरित करना चाहिए क्योंकि वे जागरुकता की मिसाल बन सकते हैं,अपने आसपास के जनपदों,बस्तियों के लिए। सरकार का विशेष ध्यान इस ओर अवश्य ही जाना चाहिए। इस दिशा में सोचने का एक और कारण भी है।स्वच्छता के जिस कार्यक्रम के जरिये हम अपने देश को निरोग,स्वस्थ सुन्दर और आकर्षक बनाना चाहते हैं,विश्व केअत्यंत स्वच्छ ,विकसित देशों के करीब लाकर खड़ा करना चाहते हैं,उसका आरंभ अगर ग्रामीण क्षेत्रों से हो तो अधिक प्रभावी होगा क्यों कि वहाँ का मध्यवर्ग ही धीरे धीरे शहरी जीवन की ओर भागता है और अपनी गंदी या अच्छी आदतों से उनके वातावरण अथवा जनजीवन को प्रभावित करता है।पान की पीकें,थूक, मूत्रादि से दीवारों,सड़कों को गंदी करने की आदतों के लिए हम उन्हें ही जिम्मेदार ठहराते हैं।अतः स्वच्छता कार्यक्रम का प्रथम पाठ भी उन्हीं से आरंभ करना उचित लगता है।
ईर्द गिर्द के ग्रामीण वातावरण मे इसकी जब कोई सुगबुगाहट नही दीखती तो कार्यक्रम की सफलता पर एक प्रश्न चिह्न तो अवश्य उठता है।
गाँवों में शौचालयों का निर्माण,स्कूलों में शौचालयों का निर्माण कार्यक्रम का एक अच्छा स्वरूप है,पर इनकी सफलता के दावे कितने सही और कितने गलत ,यह तो समय बताएगा।
इतना तो होना ही चाहिए कि प्रत्येक ग्रामीण के आवास को एक शौचालय मिले या कि संयुक्त सुलभ शौचालय और उसकी देखरेख, सफाई की चुस्त दुरुस्त व्यवस्था।

वस्तुतः,सफाई अभियान के लिए इन व्यवस्थाओं से अधिक जागरुकता की आवश्यकता है।निश्चय ही इस जागरुकता की आवश्यकता वहाँ है ,जहाँ लोग सफाई का महत्व नहीं समझते।शारीरिक स्वच्छता से लेकर खानपान,जल आदि की शुद्धता से सम्बद्ध जागरुकता ग्रामीण स्तर पर फैलाने की आवश्यकता है,आसपास की सफाई के प्रति जागरुक करने की आवश्यकता के साथ यह बताना भी आवश्यक है कि घरों से निकले कचरों का वे क्या करें।म्युनिसिपैलिटी या पंचायत स्तर पर स्वच्छता की व्यवस्था की आवश्यकता निःसंदिग्ध है। अभियान की शुरुआत यहाँ से ही होनी चाहिए।
यह भी सच है कि इन प्रयासों में सबकी सहभागिता की अपेक्षा है।
घरों को स्वच्छ रखने के प्रयास में कचरों को घर के पिछवाड़े अथवा बाहर किसी कोने में डाल देना ग्रामीणों की विवशता भी होती है।उन कचरों में हर तरह की वस्तुएँ होती हैं जो असुन्दर लगने के साथ साथ रोग फैलाने का कार्य भी करती है,प्लास्टिक जैसी वस्तुओं का आधिक्य तो होता ही है। इनसे निबटने का हर जगह उपयुक्त प्रबंध करना ही होगा।

स्वच्छता अभियान के तौर पर उठाया गया आज का यह कदम निश्चित रूप से एक प्राचीन महत्वपूर्ण कदम है जिसे महात्मा गाँधी ने भारतीयों के लिए स्वतंत्रता से भीअधिक आवश्यक बताया था।
उन्होंने तो इसे भारतीयों की मानसिक स्वच्छता से जोड़कर देखा था।महात्मा गाँधी ने इस अभियान की आवश्यकता को उसके सम्पूर्ण हद तक महसूस करते हुए स्वयं को जगह जगह पर उदाहरण रूप से प्रस्तुत भी किया था। दक्षिण अफ्रिका में”बा“ को मल साफ करने के लिए भी विवश किया था।
आज के भारत को इस हद तक जाने की आवश्यकता तो नहीं है,कयोंकि इससे सम्बन्धित व्यवस्थाएँ विकास के क्रम में काफी हद तक हो चुकी हैं,और हो रही हैं। इतना तो हमें मानना होगा कि यह अभियान दलीय राजनीति जनक विरोध के परे होना चाहिए। इसका विरोध देश के विकास का विरोध ही प्रमाणित होगा।
आवश्यकता है कि इस अभियान को हम एक जीवन दृष्टि बनाएँ और अपने सम्पूर्ण शारीरिक,मानसिकऔर नैतिक बल से इसकी सफलता की कामना करें।आवश्यकता है एक क्रांन्ति की,जन विचारधाराओं को स्वच्छता और स्वास्थ्य की ओर मोड़कर शिवम और सुन्दरम की सृष्टि करने की। सामयिक बोद्धिक वर्ग को भी अपनी रचनात्मक शक्ति से योग देने की निश्चय ही आवश्यकता है।

आशा सहाय 01—07–2015

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