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असम में हिन्दी भाषी गवर्नर का होना,जहाँवर्तमान शासन तंत्र की एक सकारात्मक सोच हो सकती है, हिन्दी को राष्ट्रभाषाके ,राजभाषा केयोग्य प्रमाणित करने की पहल हो सकती है,वहीं यह प्रयास वर्तमान फैलते विरोधी स्वर मेंअचानक एक नकारात्मक आवाज बनकर उभर ती है जब असम के मुख्यमंत्री श्री तरुण गोगई आरोप लगाते हैं कि हिन्दी भाषा भाषी राष्ट्रीय नेतागण असम पर आक्रमण करना चाहते हैं। “It is a party of Hindi speaking national leaders trying to invade Assam .” (टाइम्स आफ इन्डिया,राँची- नेशन,दि-25 -11-2015 के सौजन्य से)।उनके अनुसार हिन्दी के सही उच्चारण पर बल देना आसाम पर हिन्दी बोलनैवालों का invasion है।उनके विचार मे येनेता आसामीज का सही उच्चारण नहीं कर सकते और अपने ढंग का उच्चारण करना चाहते हैं जिसकी इजाजत वे नहीं दे सकते। क्या मुख्य मेत्री जी से य़ह पूछा नहीं जाना चाहिएकि सही सही हिन्दी का उच्चारण क्या वे या असाम के लोग कर सकते हैं?यह इतना सम्भव नहीं होता।बहुत कुछ यह उच्चारण अवयवों की अभ्यासगत विशेषता होती है । भाषा को लेकर इस तरह का वक्तव्य या टिप्पणी उस मानसिकता का परिचायक है जो इस विराट देश में व्याप्त एकता की अन्तर्निहित भावना से खिलवाड़ करना चाहती है।अगर राष्ट्रीयएकता की अंतर्धारा को बना कर रखना हम चाहते हैं तोसंस्कृति और भाषा के उतार चढ़ाव औरबदलाव को कुछ हद तक अवश्य स्वीकार करना होगा। कहने का तात्पर्य है कि राष्ट्रीय एकता कोबनाए रखने का प्रयास बहुतरफा होना चाहिए। यह मात्र किसी विशेष शासन तंत्र की विवशता नहीं है बल्कि,यह देश के कोने कोने मेंरहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के मन में समान जागरुकताऔर समान प्रयास कीमाँग करता है।अपनी संस्कृति के नष्ट हो जाने या छिन जाने का भय बेमानी औरनिर्मूल है।हाँ, दूसरी ओर देश के मुख्य शासन तंत्र को भी उत्तरी पूर्वी राज्यों की मानसिकता को समझ देशहित में लचीला रुख अपनाने की आवश्यकता है।
आशा सहाय
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