Menu
blogid : 21361 postid : 1120540

असहिष्णुता कहाँ ?

चंद लहरें
चंद लहरें
  • 180 Posts
  • 343 Comments

असहिष्णुता का शाब्दिक अर्थ है सहिष्णुता का अभाव ।सम्पूर्ण भारत में इस शब्द की हवा गर्म है।कौन हैं असहिष्णु—कब अस्तित्व में आया यह —क्यो हैं असहिष्णु –क्या कोई औचित्य भी होता है इसका—जाने कितने प्रश्न इससे सम्बद्ध, मानस में उठते हैं। उत्तर ढूँढ़ने की ईच्छा होती है।
सच पूछिये तो,यह एक मनोविकार है,जो प्रत्येक मनुष्य में मात्राभेद से अनिवार्य रूप से निवास करता है। किसी में कम तो किसी में अधिक।एक ही परिस्थिति में कुछ लोग अधिक असहिष्णु हो जाते हैं और कुछ लोग कम। कुछ में तो सहिष्णुता की पराकाष्ठा होती हैं।प्रत्येक क्रिया, घटना अथवा उत्पन्न की गयी परिस्थिति की एक प्रतिक्रिया अवश्य होती हैजो प्रत्येक व्यक्ति के विशेष व्यक्तित्व के अनुरूप होती है।

आज, निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि भारत जैसे विराट् और विभिन्न मतावलंबियों वाले देश में लोकतांत्रिकता, धर्मनिरपेक्षता,या पंथनिरपेक्षता को बनाए रखना सहिष्णुता को अपनाए बिना संभव नहीं हो सकता।यह सहिष्णुता व्यवहारजनित हो,यह तो नितांत आवश्यक है ही ,साथ ही इसे अपने मानसिक व्यापारोंऔर विचारों में ढालने की भी आवश्यकता है अन्यथा यह चिरस्थायी नहीं हो सकती।

असहिष्णुता एक ऐसी आदिम विशेषता है,जो जंगलीपने के दौर से आरम्भ होती हुई आज तक व्यक्तिगत और सामाजिक ढाँचे को नियंत्रित करती रही है। घर के अंदर से लेकर बाहर तक के विविध क्रियाकलापों मेंव्यक्ति असहिष्णु हो जाया करता है।सम्पूर्ण पारिवारिक ढांचे के अस्तित्व और विकास के लिये यह सहिष्णुता अथवा असहिष्णुता बहुत हद तक जिम्मेदार होती है।
तब फिर, किसी भी प्रसंग में प्रगट होती हुई असहिष्णुता एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, अस्वाभाविक कतई नहीं। किन्तु, एक सामाजिक, राष्ट्रीय और राजनीतिक जीवन जीने के लिए इस पर बलात् लगाम लगाने की आवश्यकता होती है।.
अब प्रश्न उठता है कि वर्तमान संदर्भ में कौन किसके प्रति असहिष्णु है। अर्थात् इसका दायरा क्या है ?निश्चित रूप से यह एक पृथक मुद्दा है।
— क्या वे असहिष्णु हैजो अपने धार्मिक विचारों केकारण तुरत आवेश में आ जाते है?

—–क्या वे असहिष्णु हैं जो इस आवेश केकारणों का विश्लेषण किये बिना हीअविलंब घोर प्रतिक्रियात्मक विचार प्रस्तुत कर देते हैं और परिणामतःएक संघर्ष का सूत्रपात कर देते हैं।

—–क्या वे असहिष्णु नही जो अत्यन्त छोटी उपलब्धियों के लिए या किसी राजनीति से प्रेरित हो मुद्दों को उछालने से नही चूकते औरइस प्रकार प्रकारान्तर से देश की शान्ति भंग करते हैं ।

—-क्या वे असहिष्णु नहीं जो अपनी हानि नहीं सहन कर पाने पर अभद्र भाषा काप्रयोग करने से नहीं चूकते,असत्य और छल कपट का सहारा लेने से नही चूकते ।

मेरी समझ से ये सभी असहिष्णु हैं।
वेभी जो देश के रजत पटल के महानायक बन करोड़ो जन के हृदय सिंहासन पर विराजते हुए देश की सहिष्णुता केविरुद्ध बयान देते हैं,और वे भी जो क्षण भर में अनुदार हो उठते हैं,महानायकों हृदय सिंहासन से उतारने को आतुर हो उनके फोटो, पुतले जलाने लगते हैं, शब्दवाणों से उन्हें बेधने लगते हैं।

हाँ ,जहाँ तक दृष्टि जाती है,असहिष्णुता ही दृष्टिगत हो रही है।यह एक ऐसा मनोविकार हैजिसका हर जगह अस्तित्व तो है पर हृदय की उदारता के सम्मुख जो हर जगह पराजित भी हो जाती है।तध्यगत साक्ष्य की अपेक्षाअवश्य होती है।

इस असहिष्णुता रूपी रुग्ण मानसिकता को जिलाए रखने के कार्य के लिए किसी व्यक्तिविशेष,दल विशेषकी स्वार्थजनितआवश्यकता को जिम्मेदार समझा जा सकता हैअन्यथा, मुण्डे मुण्डेमतिर्भिन्ना पर विश्वास करने वाले हम भारतीय ऐसी छोटी छोटी घटनाओं और वक्तव्यों से आन्दोलित नहीं होतेबल्कि इन्हें सौहार्द सेपाटने की की कोशिश करते हैं।ये तो शान्त समुद्र में उठने वाले बुद्बुद् हैं जो उन्हीं सेउठते और उन्हींमें समा जाते हैं।.
इन सारे बहुचर्चित घटनाचक्रों के वावज़ूद आसपास के माहौल में दो धर्मों के लोगों को पूरी सहिष्णुता के साथ बेतरह हिलमिलकर रहते हुए हमने देखा है और एक दूसरे के धार्मिक कृत्यों में बढ चढ़कर हिस्सा लेते भी देखा है।
असहिष्णुता का नाम लेकर देश के बड़े –बड़े सुधारवादी प्रयासों में बाधा बनकरखड़े होनेकी कोशिश तो सबसे बड़ी असहिष्णुता है ,जो अंधी है और देश के विकास को देखना नहीं चाहती ,उस ओर सेआँखें मूँद लेना चाहती है।

वैसे असहिष्णुता की भूमिका सदैव नकारात्मक ही नहीं होती,कभी कभी यह सकारात्मक भी होती है।देश की आजादी,अछूत जैसे शब्द का दे श के भावपटल सेधीरे-धीरे लुप्त होना—इसी विदेशी राज केअत्याचारों के प्रतिऔर देश केअपनेही तथाकथित सवर्णों के अत्याचारों के प्रति उत्पन्न असहिष्णुता की पराकाष्ठा का परिणाम है।

असहिष्णुता देश को विभिन्न बुराईयों और गिरावटों सेबचाती भी है।अगर प्रशासन में बढ़ते अपराधों के प्रति असहिष्णुता न हो तो देश में जंगलराज स्थापित होने में कोई विलंब न हो।प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में निवास करने वाली असहिष्णुतारूपी इस विशेषता को मात्र सकारात्मकता की ओर उन्मुख कर देने की आवश्यकता है। राष्ट्र के नायकों नेताओं प्रबुद्ध विचारकों विभिन्न कलाविदों और सामान्य जागरुक नागरिकोंसे अपेक्षा होती है कि देशहित में वेसदैव सहिष्णुता की भावना भावनात्मक एकता के अग्रदूत बनकर प्रसारित कर सकते हैं,।असहिष्णुता का राग अलापना कतई शोभनीय नहीं।

राज्यों केशासन तंत्रों की सबसे बड़ी जिम्मेवारी राज्यों मेंशान्ति व्यवस्था स्थापित करने की है,यहीं सबसे बड़ी उपयोगिता भी है।फिर क्यों न हम उन पर ही यह जिम्मेवारी छोड़ें और स्थितियोंको हवा देकर और घिनौनी होने देने से बचें।

हमारा देश बहुत सहिष्णु है। अमित धैर्यशील है। यहाँ की इसी सांस्कृतिक विशेषता के कारण विभिन्न धर्मों ,जातियों, वैचारिक वैभिन्न्य से युक्त लोग फल फूल रहे हैं । इस धैर्य को छेड़कर देश को उद्वेलित करना उथली मानसिकता की शरारत हो सकती है जिसे अनदेखा करना ही उचित है।
बस—।
आशा सहाय।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh