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स्वप्न सँजोना भी आवश्यक

चंद लहरें
चंद लहरें
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सुबह की सैर हर खबर की सूचना दे देती है।हाँ,आपके पास वह दृष्टि होनी चाहिए जो चारो ओर देखकर नयेपन को पहचान सके,आपके पास वे शब्द होने चाहिए,साथ में वह लहजा भी जो हर अन्दर बाहर के लोगों से अन्दरूनी जानकारी ले सके।ऐसी ही एक सुबह दिखा कि सड़क के दोनो ओर खुदाई की जा रही है।पूछने पर पता चला कि वाटर सप्लाई की पाइप बिछायी जानी है।आश्चर्य से मुँह खुला का खुला रह गया।यह गाँव पानी के लिए इतने दिनों से तरसता—आज क्या सचमुच पानी के नलों को देख सकेगा !! पाइप लाइन बिछने लगी और घर घर पानी पहुँच गया।कलतक जो घंटों नलकूपों के पास खड़े लड़ झगड़ रहे थे,एकसाथ ही पानी भरने, बर्तन धोने से लेकर कपड़े आदि धोने,स्नान करने के लिए सारी मर्यादाओं को ताक पर रखरहे थे,आज अपने अपने घरों में नल का पानी देख फूले नहीं समा रहे थे।अच्छा लगा।सरकारी काम काज केप्रति बंकिम भंगिमा और शिकायती रवैये में थोड़ी कमी आयी।मन सकारात्मक विचारों से भर गया ।वर्तमान सरकारी तंत्र पर विश्वास की नयी सोच लहरें लेने लगीं।लोगों के मन से अविश्वास के बादल छँटने लगे।चर्चाओं में भी यह सकारात्मकता नजर आने लगी।लोगों के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव देख अच्छा लगा।
नयेपन की कुछ और खोज में ग्रामीणों से प्रश्न किया तो उन्होंने वह जानकारी दी जिससे मैं अवगत नहीं थी।शौचालयों का निर्माण हो रहा था ।घर-घर में एक छोटा सा शौचालय–ग्रामीण महिलाओं के मन में खुशी थी ।यह उनके जीवन-स्तर की बेहतरी के लिए दिया गया बड़ा उपहार था।चर्चाओं में एक बार फिर सरकारी नीतियों की प्रशंसा होने लगी।लोगों की नकारात्मक आवाजें दबने लगी।
सकारात्मक बातें सामने आने लगीं।जीवन का सुविधामय होना चेहरे पर चमक ला गया।हर कहीं चौराहे चौबारे पर इन उपलब्धियों की चर्चा होने लगी।बहकानेवाले नेताओं पर ध्यान न देने की बातें भी साथ- साथ ही होने लगीं।
सफाई अभियान भी धीरे धीरे रँग लाने लगा पर उनके पीछे गंदगी से दूर भागनेवाली सोच गंदगी को भगाने में बाधा बनकर खड़ी हुई दीखती है। ढेर केढेर पड़े कूड़े कर्कटों को तो किसी ने हाथ नहीं लगाया पर लोगों में अपने ईर्द- गिर्द के कूड़ै कर्कटों को जलाकर समाप्त करने की भावना दीखने लगी।जोश औ’ खरोश से स्वीकार की गयी सकारात्मक सोच की ये प्रतिक्रियाएँ इस बात को प्रदर्शित करती हैं कि अच्छी भावनाओं, अच्छे कार्यक्रमों ,विचारों को लोग हृदय में स्थान देते हैं।
यह कैसे संभव है किसम्पूर्ण देश मेंकिसी भी सरकारी व्यवस्था के तहत,किसीभी राज्य के किसी भी कोने में कोई असन्तुष्टि नहो।अगर ऐसा होता तो स्वतंत्रता के पैसठ छियासठ वर्ष बाद कहीं कोई दुख दर्द नहीं होता ।कहीं कोई समस्या ही नहीं होती ।जादू की छड़ी से सबकी समस्याओं का हल हो गया होता।अगर ऐसा नहीं हो सकता तोयह भी संभव नहीं कि लोग अपने संकटों की बात ही नकरें,आजीविका के लिए चिन्तित ही न हों,प्रयत्नशीलता में प्रतियोगिता की भावना ही न हो।असन्तुष्टि इस रूप में तो दीखेगी ही।ये वाजिब चिन्ताएँ हैं,विकास की गति को दिशा देने वाली चिन्ताएँ हैं।.व्यक्ति व्यक्ति के पास चिन्ताएँ हैंऔर विकास की जितनी भी गंगा बहा ली जाए,इनका सम्पूर्ण निदान संभव नहीं क्योंकि व्यक्ति-विकास की चिन्ताओं का कोई अन्त नहीं, कोई ओर –छोर नहीं।कालक्रम से इनका निदान तो हो सकता है पर प्रतियोगितात्मक और प्रतिस्पर्धात्मक चिन्ताओं का कभी अन्त संभव नहीं।
जीवन स्तर को सुधारने से सम्बन्धित प्रतियोगिताओं का भी कोई अन्त नहीं।आज गाँवों में सड़कें बन रही हैं तो विकास की भूख उन्हें कुछ और चौड़ी और स्थायी सड़कों की माँग करने को विवश करेंगी।पेट अगर भर रहा हो तोकुछ देशी विदेशी खाद्यों का आकर्षण,उन्हें सहजता से प्राप्त करने की ओर अग्रसर करेगा।दो कमरों कामकान या फ्लैट मिल गया हो तो कुछ और सुविधाजनक मकान की ईच्छा जाग्रत होगी ।अपने से उच्चतर तबके में पहुँचने और पहुँचा देने की माँग तो बनी ही रहेगी।यह तो अति साधारण स्थिति है।हाँ इसके लिए जिस प्रयत्नशीलता की आवश्यकता है वह एक सकारात्मक सोच के जरिये ही संभव है।
गर्मियाँ आई नहीं किनिजात पाने को ,गाँव हो या शहर ,पँखे कूलर और ए. सी की आवश्कता महसूस होने लगती है।महानगरों मे इन आवश्यकताओ की पूर्ति उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग के लोग करने को विवश हैं।पर गाँवों में अभी यह सब- सभी को नसीब नहीं।गाँवों में बने ताड़ खजूर के पँखों का वे सहारा लेते हैं पर इसका यह अर्थ नहीं कि नकारात्मकता की भावनाएँ पाल ली जाएँऔर सम्पूर्ण ईर्द गिर्द को इन भावनाओं के प्रभावजाल में ले लिया जाए। उनकी आँखों में भी सपने पालने का अवसर मिलना चाहिए।नगरों महानगरों मेंभी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करनेवाले लोग हैं जो इन वस्तुओं के सपने पालते हैं और उन्हें पूरा करने कोजी जान से प्रयत्नशील होते हैं।
कोई भी कार्यक्रम सौ प्रतिशत सदैव सफल नहीं हो सकता।बीच में व्यवधान बहुत है।सबसे अधिक व्यवधान तो विपक्षी दलों के द्वारा पैदा किए जाते हैंजो हर सकारात्मक सोच के पीछे किसी नकारात्मक स्वार्थी भावना को ढूँढ लेते हैं और विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर देते हैं।
विकास केलिए प्रयत्नशील होना जहाँ अत्यन्त आवश्यक है वहीं लोगों को जाग्रत करना भी आवश्यक हैउन कार्यक्रमों के प्रति रुचि उत्पन्न करना भी उतना ही आवश्यक है।कभी कभी लोग उनींदी अवस्था में ही रहना पसन्द करते हैं। यह देश ,-जो धुर गरीब इलाकों का है,सुदूर घने जँगलों मे बसे इलाके,पर्वतीय निभृत कोने में बसे इलाके,ऐसे भी, जहाँ नवीन सभ्यता से उनका पाला ही नहीं पड़ा,उसकी हवा तक नहीं पहुँची और जिनकी जरूरतें मात्र खाने पीने ,गरमी सर्दी के सामान्य वस्त्र पहनने या अधनंगे ही रहने,छोटी सी चटाई बिछा ,कम्बल,गुदड़ी के सहारे सो लेने तक सीमित है–बच्चे—हैं,और अधिक भी – इसलिए कि किसी तरह पल बढ़ कर उनकी छोटी सी खेती बारी में सहायता कर दें या फिर भेड़ बकरियाँ चरा लें,और किसी तरह बड़े होकर माँ बाप की अंतिम साँसों को देखलें।आधुनिक सभ्यता, चकाचौंध करती बिजली की रोशनी,उन्हें परायी सी लगती है।उन्हें बिजली की रोशनी नहीं चाहिये क्योंकि वे संध्या घिरते ही सो जाना चाहते हैं,लालटेन या ढिबरी की रोशनी ही उनके लिए पर्याप्त है उन्हें सुबह चार बजे पौ फटने के पूर्व से ही उठकर दिनचर्या में लग जाना होताहै। जरूरतें सीमित,ख्वाहिशें सीमित और आय भी अत्यधिक सीमित।न वह बिजली का खर्च उठा सकते हैं न बिजली की रोशनी में चलनेवाली माओवादी गतिविधियों का हिस्सा ही बनना चाहते हैं।
क्या करेंगे आप।उनकी आय बढ़ा देना ,मुफ्त बिजली दे देने से भी उद्येश्य नहीं सधता।उनके जीवन ,उनके चिन्तन को बदलकर विकास की धारा को उनतक पहुँचाना चुनौतीपूर्ण कार्य है।यह स्थिति एसाथ ही पैसा और शिक्षा दोनों उपलब्ध कराने से ही सहज हो सकेगी।इसके लिये सकारात्मक प्रयत्न की अपेक्षा है।
इसका यह अर्थ तो कदापि नहीं कि नकारात्मक भावनाएँ पालकर उन्हें शिक्षित करने और मुख्य धारा में सम्मिलित करने का प्रयास ही छोड़ दें।तब तो सम्पूर्ण विकास की कल्पना अधूरी रह जाएगी।
उनके लिए जहाँ घोर सरकारी प्रयत्न की आवश्यकता है वहीं उनके मन में विकसित होने की तीव्र ईच्छा पैदा करने की आवश्यकता है। सपने पालने को विवश करना भी एक कलाहै।प्रयत्नशीलता की पहली कड़ी है वह।आवश्यकता है-उनमें बेहतर जीवन जीने की, जीवन केविविध विकसित स्वरूपों के प्रतिआकर्षण पैदा करने की,बच्चों की क्रियात्मक क्षमताओं का पोषण कर उन्हें देश की शक्ति बनाने की।ऐसा जो कर सके,वस्तुतः वही देश का विकास कर सकता है।.

सम्पूर्ण देश के विकास को एक सजीले स्वप्न की तरह देखना आसान है ।विदेशों से रिश्ते जोड़ना ,सीमाओं को सुरक्षित करना,अन्दरूनी आन्दोलनों को एक स्वस्थ दिशा देनाऔर अधिक से अधिक लोगोंको सुखी करने का लक्ष्य पालना तो आवश्यक है । पर,वे जो कोने में पड़े हैं,आँखें अधमुँदी हैं ,उनकी आँखों में स्वप्न सँजोना भी आवश्यक है।नहीं तो,एक तबका–अपने देश कीसुख सुविधाओं को अजनबी आँखों से देखता रह जाएगा।
यह इन सपनीली दृष्टि का ही असर है कि आज विकासशील गाँवों की झोपड़ियों के भीतर रेडियो टी वी टेपरिकॉर्डर और हाथों मे मोबाइल फोन जैसी चीजें हैं ।दरवाजे के बाहरएक मोटरसाईकिल भी दीख सकती है।
स्वरोजगार की सम्मानजनक भावना नेछोटे बड़े उद्योगों की ओर कदम बढ़ाने को प्रेरित किया है।मेक इन इंडिया जैसे बड़े सपने भी देश केशिक्षित प्रशिक्षित युवाओं को भी आकर्षित करेंगे ही ।ये स्वप्न महत्वपूर्ण हैं।अपने देशके वाह्य एवं आन्तरिक छवि को सुधारने की उत्कट लालसा लिए देश का युवा वर्ग इन्हें अवश्य पालना चाहेगा।
कुछ खबरें उड़ती उड़ती आ रही हैं।कल की सैर शायद यह संकेत दे कि आसपास के विद्यालयों मेंशत प्रतिशत बच्चों का प्रवेश हो गया है। तरुणों को रोजगार मिल रहे हैं,गाँव की सड़कों पर समयबद्ध वाहन दौड़ने लगे हैं ।ये खबरें कैसे हर्ष की लहरें पैदा करेंगी ,सोचना अत्यन्त सुखकर लगता है।आज के सपने कल सचहों,इसके लिए सपने सँजोना भी आवश्यकहै।
बस—
आशा सहाय

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