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समस्याएँ व्यक्तित्वों की—देश और समाज

चंद लहरें
चंद लहरें
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एक पीली सी सादी तितली गुलाब के पौधों पर दौड़ती सी दिख रही थी ओर चित्रित पँखों वाली काली तितली नींबू के फूलों की सुगंध लेती हुई।इस विरोधाभास का आकलन मैं कर ही रही थी कि एक ढूह के छेद सेएक साँप का मुँह झाँकता नजर आया।बच्चे साँप साँप कहते भागते नजर आए।शिक्षिकाओं ने शिकायत की। ये सारे छिद्र भरवाने होंगे।पर क्या हम उन्हें रोक सकेंगे ।हो सकता है, किसी दूसरे छिद्र से वे झाँकने लगें ।
आज मैने मनी प्लाँट की सारी शाखाएँ प्रशाखाएँ काट दीं।क्या उपयोगिता है इनकी?मैंने जर्जर भवनों मे मनीप्लाँट को रेंगते ओर लहराते देखा है।जर्जरता का फायदा उठाकर ये अपनी जड़ों का विस्तार करते हैं।मोटी मोटी जड़ें दीवारों के प्लास्टर को, जोड़ों को तोड़ती हुयी सी। जहाँ कोई वृक्ष ,कोईदीवार जैसा आधार नहीं मिलता ये विशेष नहीं बढ़ते। शोषक व्यक्तित्व।ठीक विकास के ठीकेदारों की तरह—शोषण कर लोगोंकेखोखले जीवन सेअपने मोटे स्वरूप को अंजाम देते हैं।अपने स्वरूप से लोगों को रिझाते अपनी वास्तविकताको बड़े बड़े हरे पत्तों की ओट मे छिपाते हैं,जहाँ इनकी अनगिनत जड़ें दीवार को कसकर पकड़ रखती हैं।
–सामाजिक जीवन का स्वरूप कुछ कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। हर मोटा व्यक्ति समाज सुधार ओर विकास का दावा करता नजर आता हैओर भीतर वही खानेवाला विकृत चेहरा जो घर के अन्दर की उसकी खीझों ओर शिकायतों में जाहिर होने लगता है। साँपों की तरह उनका व्यक्तित्व एक निकास के बंद होने की संभावना से आँखें मूंद निश्चिन्त होना तो नहीं ही चाहता ,दूसरा निकास भी ढूँढ़ लेता है।यही हाल है ग्रामीण अथवा शहरी जीवन को विकृत करने वाले शोषक व्यक्तित्वों के विविध रूपों का।
सादी तितली वह जो जीवन का सुगन्ध लेना चाहती है ओर बहुरंगी आकर्षक तितली वह जो समाज के खटास या तिक्त कड़वे रूपों का प्रेमी है,उसी को अपना उपजीव्य बना अपना रँग रूप सँवारती है।यह तुलना प्रसंगवश की गयी है इसका जीव विज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं।सदा से ही इन दो विचारों से युक्त लोग समाज को दिशाएँ देने का यत्न करते रहते हैं।एक का आकर्षण समाज और दुनियाँ को लुब्धता की पराकाष्ठा की ओर ले जाता हैऔर दूसरे की सुगन्ध मानस को पवित्र विचारों से भर सादगी सरलता और विकारहीनता का संदेश देती है।
एक दूसरा स्वरूप शोषक व्यक्तित्वों का है।मनीप्लान्ट के बड़े बड़े पत्तोंकी तरह खूबसूरत और स्वार्थ समृद्धि की भावना से युक्त।समाज में ऐसे लोग आधार को ही खोखला करने में प्रवृत्त होते हैं।दूसरे के रसों को स्वरस बनाकर अपना पोषण करना इनकी जीवन–जादूगरी होती है। अमरलता जैसे दिखने में आकर्षक व्यक्तित्वों कामूल किन शाखाओं पर पलता है, कहना कठिन है।किन्तु ये भिन्न भिन्न व्यक्तित्व ही समाज का निर्माण करते हैं।तब इन सारे व्यक्तित्वों का रूप बदल देने के दावे निश्चय ही खोखले सिद्ध होते हैं।
सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य के चेहरे इन्हीं कुछ कोटियों के चेहरों की प्रतिकृति दृष्टिगत होते हैं।हम राजनीतिक स्तर पर प्रजातांत्रिक मूल्यों की बातें करते हैं। समानता स्वतंत्रता और भ्रातृत्व की बातें करते हैं । पर इन तीनों गुणों को तोड़नेवाले हमारे समाजज के ये धुरंधर व्यक्तित्व ही होते हैं।सिद्धान्ततः इन गुणों से किसी को परहेज नहीं हो सकता पर जहाँस्वार्थ छद्म स्वाभिमान और सामाजिक सुविधाओं की बातें आती है ,इन सबको वे तिलांजलि दे सकते हैं।
एक पार्टी के तौर परबहुचर्चित बहुप्रशंसित आम आदमी पार्टी केप्रति लोगों का भ्रम भीटूटता सा नजर आताहै क्योंकि उसके सदस्य भी अपने आदर्शों की रक्षानहीं कर पा रहे।पदगत सुविधाओं का त्याग इतना भी आसान नहीं।व्यक्तित्वगत भ्रष्ट आचारों से मुक्ति भी आसान नहीं। बसों, साइकिलों मे यात्रा करनेवाले आज वायुयानों में उड़ाने भरते अघाते नहीं। जनता की आकाँक्षाओं के शोषण का यह भी एक स्वरूप है।
यह अलग बात है कि लोगों में व्यक्तित्वगत भिन्नता की यह प्रधानता अत्यन्त स्वाभाविक है।यही जीवन में तरह—तरह के संघर्षों का कारण भी है अन्यथा जीवन में कहीं वैषम्य नहीं दिखाई दे ,अच्छे –बुरे की पहचान ही खो जाए।राम को अपने पराक्रम और रामत्व सिद्ध करने के लिए एक रावण की आवश्यकता थी ही और कृष्ण के महामानवीय युगचेता स्वरूप के प्रतिपादन के लिए महाभारत में लिप्त विभिन्न अनैतिक कृत्यों वाले आर्यावर्त के नृपों की भी।
-प्रत्येक व्यक्ति भिन्न परिवेशों ,स्थानों,भिन्न जलवायु वाले प्रदेशों और अपनी आनुवंशिक सोच प्रभावित हो अपने व्यक्तित्व का पोषण करता है। आचार विचार ,वेशभूषाजनित भिन्नता प्रकृतिगत भिन्नता के कारण होती है।कुछेक मानवोचित भावनाओं को छोड़ बाद बाकी सारी भावनाएँ उनके परिस्थितिजन्य विकास के कारण होती हैं।एक व्यक्ति जो अपने आरंभिक दिनों में अभावों सेकष्ट पा रहा होता हैउससे उदारता और निष्पक्षता की आशा करना व्यर्थ है।शोषण केआधार पर ही वैभव का साम्राज्य खड़ा करने वाले से भी निःस्वर्थ सेवा की उम्मीद व्यर्थ है।और जो इनसे निरंतर शासित और शोषित हैंउनसे शोषक के प्रति समभाव रखने की कल्पना करना भी व्यर्थ है।दलितों के मन में पलनेवाली अन्य जातियों के प्रति क्रोधकी भावना को खत्म करना भी इतना आसान नहीं।व्यक्तित्व के इन अवगुणों कोदबाना और साधु भूमिका में रहना भी कम ही व्यक्ति कर सकते हैं।अगर वे शान्त और निःस्वार्थ हो सकते हों तो यह उनकी पृथक प्रकृतिगत विशेषता होगी।
आदमी ही नहीं, विभिन्न स्थानों केसामाजिक ,राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यक्तित्व में भी भिन्नताएँ होती हैं।एक देश का व्यक्तित्व दूसरे से भिन्न होता है।पाकिस्तान का व्यक्तित्व हिन्दुस्तान से सर्वथा भिन्न होगा।अमेरिका का व्यक्तित्व रूस से,चीन काव्यक्तित्व जापान अथवा भारत से भिन्न होगा ही।जर्मनी का व्यक्तित्व भी इन सबों से भिन्न होगा।यह उनकी उत्पत्ति,जलवायु,धार्मिक अवधारणाएँ,महान व्यक्तियों के दार्शनिक सिद्धान्तों एवम अन्य स्थानगत विशेषताओं पर निर्भर करता है।सुरक्षा असुरक्षा की भावना एवम् विकास के लिए आवश्यक संघर्ष की मात्रा पर भी निर्भर करता है।विश्व में अपने अस्तित्वका कैसा विशेष रूप उन्हें पसन्द हैयह भी एक विचारणीय विषय है।और व्यक्तित्व की यही भिन्नता किसी से मैत्री और किसी से शत्रुता को विवश करती है।
धार्मिक अलगाववादी दृष्टिकोण से जिस देश का जन्म हुआ, स्पष्ट ही मेरा इंगित पाकिस्तान से है, उस देश से यों ही भारत- मित्रता की आशा व्यर्थ है।एक हीनता से ग्रस्त देश विश्व में मानवतावादी छवि स्थापित करने के वाह्य प्रयत्नों मे काश्मीर हड़पने की गंदी स्वार्थपूर्ण नीति अपना रहा है। बार बार आतंकी प्रयास का सहारा लेना ,एक प्रयास के निष्फल होने पर दूसरे प्रयास के लिए तुरत प्रस्तुत हो जाना,उसकी नीति है।अशांति का माहौल पैदाकर कश्मीर मेअशांति का तथा मानवाधिकार हनन का मुद्दा बार-बार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाना उसकी कूटनीति का सशक्त किन्तु घृणित प्रदर्शन है।इसप्रक्रिया में कश्मीर की जनता का बलात सहयोग हासिल करना भी उसकी कूटनीति का ही हिस्साहै।अपने को विशेष शक्तिसम्पन्न घोषित कर परमाणु युद्ध की धमकी देना भी उसकी आदतों में शुमार है।ऐसे देशों कोजिन देशों का समर्थन मिलता है,कमोवेश उनकी प्रकृति भी वैसी हीप्रतीत होती है। थोड़ी बहुत स्वार्थसिद्धि के लिए स्थिति का सही आकलन किए बिना ही समर्थन देना शायद उनकी कोई विवशता ही होती है।
उरी में हुए हमले को हम कायराना भले कह लें किन्तु वह सोचा समझा सैन्य आक्रमण ही था।हम ऐसे आक्रमणों को आतंकी कहकर ढँकने का तबतक प्रयत्न करते हैं जबतक यह संभव हो सकता है।आक्रमणों के लिए प्रत्याक्रमण की अनिवार्यता सेउत्पन्नबड़े युद्ध की स्थिति को हम टालना चाहते हैं।
पाकिस्तान का दोहरा चरित्र तब सामने आता हैजब उसके शीर्ष नेतृत्व पर नेतृत्व सम्बन्धी कोई खतरा महसूस होता है।सेना पर उनका प्रभाव कम होता है ऒर सेना आतंकियों का साथ देती है। यह अजीब स्थिति है जिससे वह देश कभी उबर नहीं सकता।सारेसमझौते व्यर्थ ही सिद्ध होंगे।अपने घर के अन्दर आतंकी ट्रेनिंग सेन्टर्स को फलते फूलते देख भी वह कुछ नहीं कर सकता,बल्कि समय समय पर अपनीनीतियों केअधीन उनका उपयोग करने से नहीं चूकता।
ऐसी स्थिति में कोई बहुत बड़ा कदम ही समस्या का समाधान कर सकता हैअथवा उसकी नीति को अपनाकर ही उत्तर देना उपयुक्त हो सकता है।भविष्य के परिणामों पर दृष्टि डालने की भी आवश्यकता है।ऐसा लगता है, कि बँगला देश के निर्माण का घाव उनकी सेना भूल नहीं पाती है और देश केटुकड़े करना चाहती है—सेना की यह प्रकृति अगर देश की प्रशासकीय स्थिति से मेल नहीं खाती तो नेतृत्व पर सदैव संकट मँडराता रहता है,औरशीर्ष नेतृत्व को रह रह कर उसके मंसूबों में अपना योगदान करना पड़ता है।आज भारत का यह कथन कि बँगला देश की तरह हीवह उनके देश के और भी टुकड़े कर सकताहै,सर्वथा अनुचित कथन है।बलूचिस्तान काइस्तेमाल अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए कूटनीतिक तौर परकिया जा सकता है पर उसे तोड़ने के प्रयत्न मेसंभवतःकोई भी देश साथ नहीं दे सकता। हमें सतर्क बयानदेने की आवश्यकता है।
ईंट का जवाब पत्थर से देने की माँग सर्वत्र उठरही है। यह अंधा क्रोध है।बदला लेने का यह आदिम जँगली तरीका है। यह जंग का खुला आह्वान हो सकता है पर ऐसा करने केपूर्व अपनी शक्ति को इतना तौलने की आवश्यकता है कि वह नतो कभी पराजित हो सके और न ही अंतर्राष्ट्रीय मंच पर समर्थन खो आलोचना का पात्र ही बने। विश्व में शान्ति और समरसता स्थापित करने की हमारी छवि भी नष्ट नहीं होनी चाहिए।उपाय तो ऐसा होना चाहिए कि सांप भी मरे औरलाठी भी नहीं टूटे।
कश्मीर में युवाओं को सेना में भर्ती काअवसर दे उन्हें रोजगार प्रदान करना एक बहुत अच्छा कदम है। उन्हे अन्य ढेर सारे ऐसे अवसर मिलने चाहिए।इसके लिए नियमों को ताक पर रख क्रांति कारी कदम उठाने चाहिए ।अंदरूनी स्थितियों को सुधारने के लिए ओर अलगाववादियों को बेनकाब करने के लिए ऐसे कदम उचित हैं।आज उनकायह कहना कि वे युद्ध नहीं चाहते ,कश्मीरी अपनी इच्छानुसार चाहे जहाँ रहें पर वे अपनी इच्छा जाहिर करे—भी विषय को अंतर्राष्ट्रीय बनाने का दोमुँहा प्रयास ही है।वे जिस मतगणना के लिए बेसब्र हो रहे हैं उसकेअवसर और उनके मनोनुकूल परिणाम नहीं आने देने की कोशिशों को निरंतर जारी रखना ही होगा।युद्ध अंतिम विकल्प है।अंतर्राष्ट्रीयमंचपर उसे अलग थलग कर देना, सार्क सम्मेलन का रद्द होना ,आतंक सेवी और फैलानेवाले मुद्दे को लेकर उसे घेरने की कोशिश आदि सार्थक कदम हैं पर सिंधु जल को रोकना पुनः विवादास्पद और युद्धके आह्वान जैसा कदम सिद्ध हो सकता है।
व्यक्तित्वों का जहाँ तक प्रश्नहै—चीन जैसे देश भी दोमुँहे साँप की तरह ही हैं ।इनकी कथनी और करनी के फर्क को तो सन् ,बासठ के युद्ध में हम परख ही चुके हैं।पँचशील के सारे सिद्धान्तों को ताक पर रखकरहिन्द चीन भाई-भाई पर विद्रूप करता हुआउसने इसदेश पर आक्रमण किया था।ऐसे देशों पर विश्वास करना बहुत बड़ी भूल हो सकतीहै।विकास के कुछक्षेत्रों में सहयोग का आदान प्रदान राजनीतिक विवशता भी होतीहै।कुछेक दिनों पूर्व एक इंगलैड आधारित स्ट्रैटेजिक सर्वे में स्वीकार किया गया है कि भारत-की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा चीन ही है।भारत के विकास के मार्ग में सदैव आड़े आना भी इसका प्रमाण है।फिरभी हमारा पड़ोसी देश होने के नाते अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखना हमारी शान्तिप्रियता के लिए आवश्यक ही है।
किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय जगत मेंऐसे देशों के दोहरेचरित्रऔर चेहरों को उजागर करना आवश्यक हैताकि विषैले प्रयासों में अन्य देशों की सहायता व सहमति उसे नहीं मिल सके।
व्यक्तित्व चाहे व्यक्तिविशेष का हो, देशविशेष का अथवा एक देश के अन्तर्गत विभिन्न राज्यों का ही क्यों नहीं,उनकी भिन्नताओं को समझना आवश्यक होता है। उनकी समस्याऔं से उत्पन्न विरोधअथवा अविरोध की स्थितियों सेनिपटने के लिएउनके व्यक्तित्व का आकलन करना आवश्यक है।व्यक्तित्वों की यह भिन्नता सदैव ऋणात्मकता की ओर देखने को बाध्य नहीं करती। उसके कुछ घनात्मक पक्ष भी होतेहैंजो हमें एक दूसरे से हाथ मिलाने को विवश करते हैं।नकारात्मकपक्षों का विश्लेषणकर उनमें सकारात्मकता की भावना का तार्किकभराव किया जा सकता है।राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर यह संभव है।ये भिन्नताएँ समाज और राष्ट्र की वे विशेषताएँ हैं जिसने विश्व को साँस्कृतिक वैभव भी दिया है,और संघर्ष भी उत्पन्न किए हैं।आज आवश्यकता उन सबों कोसमझनेऔर सबों के सम्यक विकास के लिए समुचित कदम उठाने की है।भारत सांस्कृतिकरूप से अत्यन्त विकसित और गौरवशाली परम्पराओं वाला देश रहा है। अपने महत्व को प्रतिपादित करते हुए हर जगह वह इस दिशा मे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साथही सम्पूर्ण विश्व की यह अन्तर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी है.।
जब हम विश्वस्तरीय पूरे समाज की एकरूपता की आकांक्षा करते हैं तो विभिन्नता के मूल तथ्यों को विस्मृत कर देते हैं। यह सचहै कि जबतक सबकी स्थिति सम नहीं होती,उच्च और उच्चतर स्थिति को पाते हुए व्यष्टि अथवा समुदायों मेंउन वाँछित गुणों को विकसित करने में आसानी होगी अगर उनमें बौद्धिकता का भी वाँछित विकास हो जाए।

आशा सहाय 29-9-2016

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