Menu
blogid : 21361 postid : 1285469

प्रतिक्रियाएँ-राजनीतिकी —मेरी दृष्टि से

चंद लहरें
चंद लहरें
  • 180 Posts
  • 343 Comments

ऐसा प्रतीत होता है देश के नेताओं का सत्ता प्रेम उचित और अनुचित की सारी सीमाएँ लाँघ चुका है। देश की सुरक्षा की सर्वथा अनदेखी कर भी वे अपनी राजनीति की रोटी सेंकना चाहते हैं।एल . ओ . सी कं अन्दर जाकर कुछ आतंकवादी कैंपों को तहस नहस करने की घटना को पाकिस्तान द्वारा पचा नहीं पाने और सम्पूर्ण रूप से अस्वीकार करने का कारण तो समझ में आता है कि वह विश्व मेंअपनी पाक साफ छवि और पाकिस्तानी सेना की असंलग्नता स्थापित करना चाहता हैपर उसकी इस मिथ्या को पुष्ट करने के प्रयत्नस्वरूप भारतीय नेतागणों के संशयात्मक बोलों को किस प्रवृति की संज्ञा दी जानी चाहिए –यह समझ में नहीं आता।पाकिस्तान ने तो अपनी अन्य प्रतिक्रियाएँ अपनी क्रियाकलापों से स्पष्ट कर दीहै ।जम्मू और पुंछ जिले के कई स्थानों पर एल ओ सी पर सीजफायर का उल्लंघन करने की कोशिशें जवाब देने जैसी ही हैं। कोशिशें नाकाम की गयीं ।पर उन्होंने प्रकारांतर से अपनी तिलमिलाहट ही अभिव्यक्त की।किन्तु, दूसरे देशों को वह अपनी बात का सबूत तो देसकता है पर अपनी जनता को बहला देना इतना आसान नहीं जो नित्य ही आतंकियों को संरक्षण देने की उसकी नीति की आलोचना कर रही है। पाकिस्तान की आन्तरिक हलचल भी कमोवेश भारतमें उरी की घटना के बाद वाली सी प्रतीत होती है।उसने भारतीय कलाकारो और मीडिया पर प्रतिबंध लगाए हैं। पर अभी भारतीय नेताओं को जिस एकजुटता का प्रदर्शन करना चाहिए था,वह जाने कहाँ अचानक लुप्त हो गयी है।इस एक महत्वपूर्ण घटना को भी वे स्वार्थपूर्ण राजनीति का मुद्दा बनाकर एकसाथ ही सेना का मनोबल तोड़ने एवम् सरकार के सार्थक साहसपूर्ण निर्णयों के प्रति जनता में अविश्वास का माहौल बनाना चाहतेहैं ।
– इतना ही नहीं , हमें यह कहने में भी हिचक नहीं होनी चाहिए कि इसप्रकार की गम्भीर कार्रवाई के उपरांत जिन गम्भीर वक्तव्यों की अपेक्षा हम सत्तारूढ़ पार्टी से कर रहे थे, उसमें हमें किंचित निराशा हाथ लगी।सरकार की सफलता से जोड़कर इसे अत्यधिक प्रकाशित कर श्रेय लेने की कोशिश किसी भी तरह प्रशंसनीय नहीं है। ये वक्तव्य अत्यधिक सामयिक उत्साह में पार्टी के छोटे व्यक्तित्वों के द्वारा दिये जाने पर अवश्य ही क्षम्य होंगे पर उच्चस्तरीय नेताओं के द्वारा दिये जाने पर हल्केपन का प्रमाण देते हुए से प्रतीत होते हैं।किसी भी सत्तारूढ़ सरकार की उन स्थितियों में वैसे ही कदम लेने की आवश्यकता और विवशता उसकी सुदृढ़ स्थिति की परिचायक ही होती है।अपनी सुदृढ़ता कोअपने कार्यों द्वारा प्रकाशित कर एक अल्प व्यक्त संदेश जनता के मध्य प्रेषित करना चाहिए न कि स्वयं की वाहवाही के अत्यधिक मुखर स्वरों से अपनी सदैच्छिक सुदृढ़ता को संकट में डाल देने की कोशिश।
–इस प्रसंग में यह कहना अनुपयुक्त नहीं होगा कि भारत की अधिकांश मध्यवर्गीय जनता की बात तो छोड़ें सामान्य और अल्पशिक्षित जनसमुदाय भी सदाशयिक प्रयत्नों पर विश्वास करती है, आत्म प्रचार को प्रशंसनीय नहीं मानती।एक गम्भीर विषय को गम्भीरता के परिप्रेक्ष्य में ही देखा जाना उचित है।श्रेय तो स्वयं ही मिलेगा।
— मीडिया इस स्थिति कोअधिक छीलकर बदतर बनाती जारही है।इस प्रकार वह उस प्रसंग की गम्भीरता को कम करती एवम् उन देशों को व्यंग्य करने का मौका अधिक देती है जो हमारी अंदरुनी विरोधी स्वरों का लाभ लेना चाहते हैं।
— अतिवादिता राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर बुरी है। इसके फलस्वरूप संभव है आतंक के मुद्दे जैसे गम्भीर मसले पर भी अन्य देश तत्काल खुला समर्थन देने से पीछे हट जाएँ।धीर और गम्भीर कदमों से ही उस लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है जिसके लिए हम प्रयत्नशील हैं।
—सरकार निरंतर ही प्रयत्नशील है विरोधियों को भी अपने स्वर में स्वर मिलाने को सहमत करने के लिए तो हमें विभिन्न स्तरों पर किए उसके प्रयासों में सहयोग देने के लिए विरोधों और निष्प्रयोजन आलोचनाओं से बचना चाहिए।
—-एक अन्य विषय जो विवादस्पद बनता जा रहा है वह है पाक कलाकारों का बहिष्कार।इस सम्बन्ध में दोनों खेमे में बंटे लोग अपनी अपनी जगह पर आंशिक सत्य के पक्षधर प्रतीत होते हैं। सिद्धांततः यह सही है कि कलाकार आतंकी नहीं होते। पर कलाकार हों अथवा किसी अन्य समुदाय के लोग-अपने देश के प्रति प्रेम हर किसी में होना जायज है।इस प्रेम के तहत वे कला के मंच पर भी किसी के प्रति घृणा या अवमानना पाल सकते हैं ,या अवमानना के पल पल शिकार भी हो सकते है अगर सब इतने ही विवेकसम्पन्न प्रबुद्ध क्यों न हों । इस सम्बन्धमें ऐसा लगता है किउनके भीतर की भावनाओं की अनदेखी कर,उनपरसंशय नकरते हुए उनके कार्यों को पूर्ण होने तक का समयदेते हुए,भविष्य में आनेवाले कलाकारों पर रोक लगायी जा सकती थी।हाँ आतंक के विरोध के नाम पर हम उनसे दो शब्दों की आशा तो कर ही सकते थे। शायद यही उदारवादी भारतीय भावना के अनुरूप होता।
— हम भारतीयहैं। अपनी स्वार्थसिद्धि मात्र ही नहीं देखते हुए विवेकपूर्ण ढंग से कर्तव्यों का निश्चय करना चाहिए।हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा भी तभी हो सकेगी।

आशा सहाय

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh