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आज जब पड़ोसी देश के द्वारा हमारी सीमाओं पर चोटें पर चोटें की जा रही हैं हमारी सेना के जवान प्रत्त्युत्तर देते हुए शहीद भी हो रहे हैं,हमारे देश के एक विशिष्ट प्रकाशपर्व ने हमारे द्वारों पर दस्तक दे दी है।इस पर्व की अवहेलना हम कदापि नहीं कर सकते।अपने देश में दीपावली की खुशियाँ मनती रहें इसी मे उनके शौर्य और पराक्रम की सार्थकता भी तो है।
— दीपावली के दीप तो जलेंगे ही,परम्परागत ढंग से सजाए भी जाएंगे।घर आँगन के कोने कोने को उजाले से भर देंगे।कंदील सजाए जाएँगे। आकाश की ओर ऊँचे सेऊँचे रोशनी के सितारे टाँगे जाएँगे। शायद बड़े बड़े शहरों में या परिष्कृत परिवारों में अब यह सब समय की बर्बादी या फूहड़पन मान लिया जाता हो पर सचपूछिये तो परम्पराओं का रक्षण ही कहाँ होता है वहाँ!! हाँ,रोशनी के बल्वों की जगमगाहट और सज्जा अवश्य होगी वहाँ- जहाँआँखें टँगी की टँगी रह जाएँ।परम्पराओं का थोड़ा बहुत निर्वाह अभी भी मध्यम वर्गीय परिवारों और ग्रामीण इलाकों मे देखने को मिल जाएगा।आतिशबाजियाँ हर जगह अवश्य होंगी।आतिशबाजियों से उल्लास के स्वर मुखरित होंगे ही,प्रतिस्पर्धा के स्वर भी मुखरित होंगे। उपलब्धियों की अहंकार ध्वनियाँ भी सुनायी देंगी।सारी जगहें प्रकाशित होंगी । हाँ, इसबार शहीद सैनिकों केनाम भी एक दीप हम जला लें ।पर, क्या सब कुछ प्रकाशित हम कर पाएँगे? लाख सूर्य चन्द्रमाएँ अरबों खरबों सितारों के द्वारा भी अंतरिक्ष मे व्याप्त मूल कालिमा को मिटा देना जैसे संभव नहीं–, अमावस्या की एक काली रात को भी हम पूर्ण प्रकाशित नहीं कर सकते।दीपों भरी रात की यह कैसी अशक्यता!!
–दूसरे ही दिन से दीपावली के दीपों के अभाव में हमारे आसपास भी सन्नाटा छाएगा।लोगों की मस्ती स्मृतियों के साध जुड़कर कुछ और रंग लाएगी ,पर वह प्रकाश जिसे हम दीपावली के दिन अपनी सम्पूर्ण शक्ति से फैलाना चाहते है ,नहीं मिल सकेगा।ऐसा सदैव होता रहेगा क्योंकि मन का अंधकार लाख दीयों,मोमबत्तियों ,विद्युतदीपमालाओं के प्रकाश से भी मिटाए नहीं मिटता।
घर-बाहर का प्रकाश अन्तर के प्रकाश से कहीं बहुत छोटा होता है। मन को सुविचारो से,करूणासे ,उदारता से, अन्य उन्नयित भावनाओं से अगर हम आलोकित कर लें तो सर्वत्र दीपावली ही दीपावली होगी। उनके घर भी दीयों की अवली सज जाएगी जो आपके घर से दीप चुराकर अपने घरों में दीप जलाने की इच्छा पूरी करते हैं।छोटे छोटे घरकुण्डे बनाकर गृह निर्माण का स्वप्न उसके भीतर लक्ष्मी गणेश की मूर्तियाँ बिठाकर शुभ ओर धनलाभ की कामनाएँ करते हैं।हाँ, तब अवश्य उनके सच्चे मन की कामनाएँ पूरी होंगी।
— दीपावली के पूर्व मन के दीये जलाने की कोशिश करें।
-हम अपने समाज के उन लोगों से परिचित हों जो किसी न किसी सामाजिक पारिवारिक या शारीरिक कारणों से,या अत्याचारों से पीड़ित हो जीवन का उल्लास भुला बैठे हैं। उनके जीवन में जीवन का उल्लास जगाने या उसकी सम्पूर्ण सृष्टि करने की चेष्टा हमारे मन के शत शत द्वार खोल देंगे।हमारा मन रोशनी से भर जाएगा।मन का यह उल्लास रोके न रुकेगा,वह उल्लास की उस धारा की खोज कर लेगा जो अध्यात्मिक दिव्यता का मार्ग प्रशस्त कर देगी।हृदय के दीप तो यूँ ही जल जाएँगे।सारे विकार नष्ट हो जाएँगे।आपके जगमग व्यक्तित्व का प्रकाश सबों की समस्याओं का स्वस्थ समाधान ढूढ़ने में आपकी मदद करेगा।
–कंदील को ऊँचे से ऊँचे स्थान पर जलाना या टाँगना हमारे उस प्राचीन प्रयास का प्रतीक है जो दूर सेआनेवाले यात्रियों ,नौकाओं,जहाजों या मार्ग भटके, संकट मेंपड़े लोगों के लिए दीपस्तम्भ की तरहप्रकाशित हो।दूसरों को दिशा पाने में मदद करे, भटकने से रोके।अपने मन और हृदय को हम वही कंदील क्यों न बना लें और स्वयं के साथ-साथ दूसरों के जीवन को भी आलोकित कर एक सही दिशा देने का प्रयत्न करें।
–जब तक मन के दीये नहीं जलते हम अपने पराये,पुरुष नारी,हिन्दु मुस्लिम जैसे ओछे पचड़ों में पड़े रहेंगे। हमारा विवेक जाग्रत जब जाग्रत होगा तभी अयं निजः परोवेति की भावना का संहार होगा ।वसुधैव कुटुम्बकम को बल मिलेगा।देशगत, विश्वगत, संदर्भ में मानवहित की बातें करेंगे।महिला –महिला मे एकही प्रकार की इच्छाएँ समस्याएँ स्वतंत्रता की ललक, और उँचाइयों पर पहुँचने की ललक के दर्शन और उनके प्रति समुचित न्याय कर सकेंगे।तीन तलाक जैसी अमानवीय पद्धति का तिरस्कार कर सकेंगे।चाहे हम जिस धर्म में साँसें ले रहे हों, मन के दीपों को रौशन करना आवश्यक है।विश्व स्तर पर इन भेदभावों को दूर करने एवम् सबों को एक स्तर पर लाने की कोशिश करेंगे।नरकासुर और रावण की तरह मनके अन्दर जड़ें जमाए असुरों का संहार कर सकेंगे।
मन के अन्दर का दीप निरंतर जलने को स्वयमेव सचेष्ट रहता है ।सत्य को आलोकित करने की कोशिश भी करता ही है।अन्तर का अंधकार समय समय पर स्वयं ही उसे कचोटता है। पर स्वार्थ की भावना गहरी कालिमा सी उसपर हावी हो जाती है और उसे ओढ़कर जीने में ही सुख पाना चाहता है।आवश्यकता है आत्मिक बल रूपी स्नेह या तैलीय द्रव्य की-जो उसे भरपूर जलने की शक्ति दे।यह हम आप सभी कर सकते हैं।इन्हें जलाने हम किसी को विवश नहीं कर सकते।येतो स्वयं के प्रयत्नों से ही जल सकते हैं। तो आएँ ,दीवारों चौबारों पर दीप जलाने के साथ साथ मन के दीप भी जला लें।
दीपोत्सव –आनन्दोत्सव तो है ही,यह प्रकाशपर्व है।जीवन मेंआलोक भरना ही इसका उद्येश्य है।आनन्द का कोई तात्कालिक कारण हो न हो ,श्रेष्ठ कारण तो वही है।अतः दीपावली हम सभी मनाएँगे। सीमा पर कुर्बान होते जवानों को याद करते हुए, विशेष शोरगुल के बिना, ,अपनी अपनी शक्ति ,सामर्थ्य और भावनाओं के अनुसार— मन के दीप जलाते हुए।
आशा सहाय–।
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