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विरोध –नकारात्मक भूमिका-

चंद लहरें
चंद लहरें
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अखबार में यहपढ़कर किविरोध की राजनीति के तहत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्रीके द्वारा सरकार की सतर्क दृष्टि केपरिणामस्वरूप ऊँगली में स्याही लगाने के निर्णय को भी गलत ठहराते हुएयह तर्क देना कि लोग फिर वोट कैसे देंगे—उनकी सोच की नकारात्मकता और विरोध की बेबसी परहास्य की सृष्टि करती है कि वे यह कैसे विस्मृत कर सकते हैं कि शरीर में दो हाथों और दस ऊँगलियों का अस्तित्व होता है । किस हाथ मे , अधिक से अधिक कितनी ऊँगलियों मेंस्याही लगायी जाएगी ,यहबार –बार एक्सचेंज करवाने जाने वालों पर निर्भर करता है।
— मात्र यही एक बात यह सिद्ध करने को पर्याप्त है किविरोधी दल के नेता गणों के पास ठोस तर्कों का पूर्णतः अभाव है और वे मात्र विरोध के लिए विरोध की राजनीति कर रहे हैं । लगता है संविधान मे विरोधी दलों की ऐसी नकारात्मक भूमिकाओं के लिए भी पर्याप्त अवकाश है।
–जनता के बीच से बेईमान तत्वों को उजागर कर ,सही रास्ते परचलने का निर्देश देता हुआ वर्तमान सरकार का यह कार्यक्रम, और यह फैसला देश में क्रान्तिकारी स्तर पर बहुत सारे सकारात्मक परिणाम उत्पन्न करनेवाला है, भ्रष्टाचार मिटाने में बहुविध सहायक है, नकली नोटों से मुक्ति दिलानेवाला है ,यही स्थिति उन्हें भयभीत कर रही है। तमाम विगत प्रयासों पर विफलता और प्रभाव हीनता का संकेत करती जान पड़रही है । बहुत सामान्य सी बात है कि वे इसे एक बार में पचा नहीं सकते।विरोध करने का उनका अधिकार सरकार की कार्यप्रणाली मे दोष निकाल उसे सही रास्ता दिखाने के लिएहै न कि वेवजह आलोचना के लिए। भारतीय प्रजातंत्र में विरोधी दलों का समान महत्व होताहै, ।विरोध करने का उनका हक हैपर देशहित मेंकिए गए कार्यों मे विरोधी दलों को इतने नग्न अर्थहीन प्रयोजनहीन विरोध प्रदर्शन से बचना चाहिए।आज की स्थिति में उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये विरोध उन्हें भी भ्रष्टाचारिता के कटघरे में खड़ा कर सकते हैं।
— व्यवस्थाओं मे आनेवाली अड़चनों को से सावधान होकर और उसे स्वीकार करते हुए सुधार भी किए जा रहें हैं।अगर मनोबल है ,दृढ़ता और साहस है,किसी भी प्रकार के परिणामों को स्वीकार करने की बेहिचकता है तो कार्यक्रम को सफलता मिलनी ही चाहिए।कुछ प्रायोजित तत्व भी इन लम्बी लाइनों में जुड़े हुए दिखे । झुकी हुई कमर वाले वृद्ध वृद्धाओं और कुछ ऐसे लोग जिनके पास पाँच सौ के नोटों का जमा होना संदिग्ध है, उनकी लाईनों मे उपस्थिति उनके आधार कार्ड के गलत उपयोग और जनता के सामने एक करुण दृश्य प्रस्तुत करने मे सहायक सिद्ध हो रहा है। अपनी आपराधिक मानसिकता का सहारा नहीं बनाकर, लोग उनकी सहायता कर सकते तो यह देशहित का कार्य होता।
— कुछ नेताओं का यह तर्क कि कालेधन की भी कभी कभी आवश्यकता होती है और कभी कभी वे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सहायक भी होता है,यह ब्लैकमनी-लोलुपता का ही प्रदर्शन करता प्रतीतहोता है।इसलोलुपता के पीछे कितने भ्रष्टाचारों का पोषण होता है,यह सहज ही अनुमान्य है।
— केजरीवाल की कुलबुलाहट इसलिए समझ में आती हैकि केन्द्र के साथआरम्भ से चली आती लड़ाई के तहत इतने बड़े मुद्दे की वेअनदेखी नहीं कर सकते। यह उनकी धर्मगत लड़ाई है।
-मीडिया की नकारात्मक भूमिका भी देखने को मिलती हैजब ए टी एम और बैंकों के समीप कीभीड़-भाड़ को विकृत स्वरूप देते हुए और मारपीट की घटनाओं को तूल देते हुए सरकार के निर्णयों पर प्रश्नचिह्न खड़े करने का कार्य करते हैं।मीडिया का यह स्वरूप – देश के लिए जनमत निर्माण के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण के अभाव का प्रदर्शन करता है।मीडिया का व्यावसायिक स्वरूप भी देशहित पर प्रहार करता हुआ नहीं होना चाहिए।
— किसानों और दिहाड़ी मजदूरों को किसी प्रकार की परेशानी न हो यह देखना आवश्यक तो है पर यह दे खना भी आवश्यक है कि वे कही वे महाजनों ,जमाखोरों की चाल के शिकार न हो रहे हों।
— ऐसे लोगों के मुँह सेयह भी शंका प्रगट की जाती है कि कहीं प्रधान मंत्री के साथ कोई अनहोनी न हो जाए,तो नेक इरादे और गंदे इरादों का संघर्ष स्पष्ट होने लगता है।आक्रोश बढ़कर किस कदर मानवीयता पर हावी हो सकता है,यह स्पष्ट हो जाता है। उनका साथ देना देश के प्रति किया गया घोर अपराध है।
— तथाकथित नोटबंदी सेसम्बद्ध पूर्ण गोपनीयता नहीं बरती गयी—ऐसे आरोपों की निश्चय ही पूर्ण जाँच होनी चाहिए।गुजरात केअखबारों में पहले ही इस योजना की खबर हो गयीथी,–इस बात की भी जाँच होनी चाहिए।बाकी सारे आरोप महत्वहीन से प्रतीत होते हैं।
— “ दीवारों के भी कान होतै हैं”और” तू डाल डाल हम पात पात “जैसी कहावते सार्थक हो सकती हैं।वैसे सुपरिणामों की झलक बहुत सारे क्षेत्रों में मिल रही है। बैंकों में भीड़ भी कम हो रही है।स्थिति के बिल्कुल सामान्य होने मे कुछ समय तो लगेगा ही ,तबतक हम सबों को सहनशीलता का परिचय देना चाहिए।इसआशा के साथ कि काला धन खत्म करने की दिशा मे यह अभियान एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगा। —

आशा सहाय—17-11-2016—।

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