चंद लहरें
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एक नवल भव्यता से अब तो
भारत को मंडित होने दो।
है जहाँ तलक दृष्टि उठती
यह विश्व अभी भी भव्य नहीं
दासत्व जहाँ हँसता रोता
और काला रँग कलुषित मन का
हर श्वेत हृदय काला करता
अब भी है शोषण शेष जहाँ
दम विश्व विकास का पर भरता
है न्याय का यह कैसा विद्रूप
अपराध कुलाँचे है भरता
कैसी मति गति कैसी नर की
आतंक मिटाने हेतु यहाँ
आतंक सहारा बनता है
परिवर्तन का संदेश मधुर
निज प्रेम भाव से भरने दो
यह है अप्रतिम वह भाव राग
इससे तन मन को बदलने दो
इस एक भव्यता से अब तो
भारत को मंडित होने दो।
रिश्तों के पँख पसारे ज्यों
पक्षी नभ में उड़ता जाए
दे देकर प्यार भरा अनुभव
चुन चुन संदेशे ले आए
उड़ने दो नभ में दूर तलक
निज नवल रँग भरे पँखों से
इस विश्व हृदय को हरने दो
एक विरल भव्यता से अब तो
भारत को मंडित होने दो।
आशा सहाय ।
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