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स्वप्न- स्वच्छ भारत मिशन का –एक दृष्टि।–

चंद लहरें
चंद लहरें
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–स्वच्छ भारत मिशन एक ऐसा स्वप्न है जो हर स्तर पर मन को सुकून देता हुआ प्रतीत होता है ।स्वच्छता हर क्षेत्र की।कल्पना बहुत सुखदायी है पर वास्तविकता अभी भी कोसों दूर।स्वच्छता तन की,घर, बाहर, नगर ,राज्य की—यह कल्पना इतनी मधुर लगती है कि हमारेअपने देश की क्रूर वास्तविकताएँ उससे आच्छादित हो जाती हैं।घर –बाहर,गलियों सड़कोंपर बिखरी गंदगी हटाने के लिए झाड़ू उठाते हुए पिछले वर्ष नेतागण दीखे।सबने बढ़चढ़कर अपने को कैमरे और प्रेस के सामने प्रदर्शित किया ,पर फिर वही ढाक के तीन पात।जगह जगह सड़ते ,गँधाते कूड़ों की हरजगह अभी भी पूरी सफाई नहीं हो सकी। नदियाँ अभी भी गँदलीहैं।.तालाबों केकिनारे अभी भी सड़ते कचरों की भरमार है।गाँवों की स्थिति इस मायने में अत्यधिक शोचनीय है जहाँ अर्धशिक्षित मानसिकता इन मामलों में सदैव दूसरों का मुँह जोहती हैं।लाख प्रयत्नों के बाद भी शौचालय बनवाने और उसका प्रयोग करने से अभी भी कुछ ग्रामीणों को एतराज है।हो सकता है तरह तरह के दंड विधानों के सख्त प्रयोगों से स्थिति में अंतर आए।
–प्रश्न है मानसिकता का। हमें अस्वच्छता इसलिए नहीं दीखती कि हम उसके आदी हो गए हैं।तन साफ करने के लिए प्रचार मे आए सुगन्धित साबुनों का प्रयोग, चेहरे पर क्रीम आदि सौन्दर्य प्रसाधनों का लेपन आम बात है ,पर कूड़े कचरों के प्रति उदासीनता अभी भी बरकरार है।सिद्धान्तों की स्वच्छता सबको प्रिय लगती है पर व्यवहार में वह मात्र अपने घर तक ही सीमित रहती है।बाहर की जिम्मेदारी भला उनकी क्यों।यह भी अस्वच्छता की मानसिकता ही है। हाँ –जहाँ नगर निकायों मे सक्रियता है वहाँ स्थितिमे अवश्य सुधार हुआ है।
—वस्तुतः स्वच्छता मस्तिष्क में होनी चाहिए।जहाँ हम अपने कुकृत्यों परपर्दा डालने की कोशिश करते रहते हैं वहाँ मस्तिष्क की स्वच्छता आ ही नहीं सकती।यह तो अपने आस पास की स्वच्छता की बात हुई ,पर स्वच्छता की लड़ाई यहीं तक सीमित नहीं।आर्थिक मोर्चे पर स्वच्छता अभियान का स्वरूप नोटबंदी और कैशहीन आर्थिक व्यवस्था के द्वारा अवैध रूप से संचित धन को वैध बनाने की प्रक्रिया एवं अवैध धन संचित न होने देने हेतु किए गए प्रयत्मों के रुप मे देखने को मिला।देश के अन्दर किए गए इन प्रयत्नों को थोड़ी सफलता तो मिली पर मध्यम वर्ग ही अधिक प्रभावित और भयभीत हुआ। धनी संवर्ग ने अपने लिए बहुत सारे रास्ते ढूँढ़ ही लिए।
—किन्तु लोकताँत्रिक देश को सम्पूर्णतः स्वच्छ करने के लिए सर्वप्रथम राजनीतिक मोर्चे पर स्वच्छता अभियान को लागू करने की आवश्यकता है।स्वच्छ विचारों का समावेश राजनेताओं मे होना चाहिए।इस दिशा मे उच्चतम न्यायालय द्वारा किया गया प्रयास सराहनीय है।न्यायालय ने जहाँ प्रत्याशी नेताओं पर धर्म जातिऔर भाषा केआधार पर मतदाताओं को अपनी ओर आकृष्ट करने से रोका है वहीं अपराधी छवि वाले व्यक्तियों की नेतृत्व– पात्रता को भी कठघरे मे ला खड़ा किया है।यह सच है कि उच्चतम न्यायालय के द्वारा उठाए गए कदमों से एक स्वच्छ निर्वाचन प्रक्रिया को प्रश्रय मिल सकेगा।पाँच राज्यों के सन्निकट चुनावों मे यह नीति किस प्रकार क्रियान्वित होती है अथवा हो सकेगी यह ध्यान देने का विषय है।यह एक सकारात्मक सोच तो है पर स्वच्छता अभियान की सबसे बड़ी चुनौती भी।उत्तरप्रदेश जाति ,वर्ग, धर्म केमुद्दों से सदा गर्माया रहा है, कभी राम मन्दिर कभी दलित वर्ग तथा कभी मुस्लिमों की चिन्ताएँ यहाँ चुनावों पर हावी रही ही हैं।
–दोषारोपित छवि वालों के संदर्भ में फिर वही तर्क कि कानून जबतक दोषी सिद्ध नहीं कर देता कोई अपराधी नहीं कहला सकता, अपराधियों कोभी सुरक्षा दे देता है। वे चुनाव लड़ने को स्वतंत्र हो जाते हैं।
–देश की भ्रष्ट मानसिकता से युक्त जनता कानून के साथ भी तू डाल डाल हम पात पात का खेल खेलती रहती है सामान्य जनता की मानसिकता भी दुर्बल है इतने दिनों से प्रचारित जाति धर्म के मुद्दे स्वयम् ही उसपर हावी हैं ।वे चुनाव केदौरान प्रचारित हों अथवा अप्रचारित ,स्वयमेव प्रचारित हो जाते हैं।खैर, यह एक सकारात्मक कदम अवश्य है और स्वागतयोग्य भी।मानसिक अस्वच्छता से सम्बन्धित चुनावी स्थितियों से जुड़ा चुनावी खर्चों की पारदर्शिता का मुद्दा भी है। सम्बन्धित नियमों का परिपालन सही ढंग से करवाने की आवश्यकता है।
—स्वच्छता अभियान का एक पहलू मानसिक सफाई का भी है। सख्त नियम, दंड प्रणाली का सही इस्तेमालऔर जनता को प्रबुद्ध करने की कोशिश से ही यह संभव है।इसके बिना न गाँव घर स्वच्छ हो पाएँगे और न राष्ट्र की सामाजिक राजनैतिक मानसिकता ही स्वच्छ हो पाएगी।
— मानसिक स्वच्छता एक ऐसा विषय है जिसमें विषय विकारों और वैचारिक स्वच्छता का अनायास समावेश हो जाता है।कुछविशिष्ट श्रेणी केनेताओं ने जो राज्यों की मुख्य कुर्सियाँ सम्हालते हैं ,-लड़कियों ,छात्राओंअथवा किसी भी श्रेणी की स्त्रियों से सरेआम छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के मामले को विदेशी पहरावे से जोड़ने की चेष्टा की है।आज के युग में इसे असंतुलित मानसिकता की संज्ञा ही दे सकतेहैं । यह दृष्टि की अस्वच्छता है जो पुरुष और नारी के सम्बन्ध में ऐसी घृणित भेदभाव भरी सोच रखती है।घर के वातावरण,सामाजिक वातावरण,और गलत ढंग की शिक्षा इस सोच के लिए जिमम्मेवार है।ऊँचे पदों पर आसीन नेताओं की दृष्टि इतनी संकुचित होगी तो नारियों केविकास कासपना पूर्ण होने में अवश्य ही संदेह है।येदृष्टिदोष ही वर्तमान समाज के अभिशाप हैं जो उनके विकास में बाधक हैं ।पुरुषों के समान काम करनेवाली नारियाँ वेशभूषा में चुस्त दुरुस्त रहना चाहती हैं ,जीवन की भगदौड़ मे पुरुषों की बराबरी करनेवाली नारियों को विशेष वेशभूषा के लिए विवश नहीं किया जा सकता।हाँ अपने दृष्टि दोष को अवश्य दूर करने की कोशिश की जा सकती है।परम्परा से चले आ रहे दृष्टिकोण को बदल डालना इतना आसान तो नहीं पर कोशिश करने और असंयमित बयानों से परहेज करने की आवश्यकता है। धार्मिक स्थलों ने अपनी वर्जनाओं से उन्हें मुक्त करने का फैसला कर मानसिक स्वच्छता की ओर कदम बढ़ाने आरम्भ कर दिए हैं।.बदलाव का यह दौर बहुत सारी उम्मीदें राजनैतिक हस्तियों से रखता है।
, — मादक द्रव्यों का अत्यधिक सेवन भी इन कुकृत्यों के लिए जिम्मेवार हैजो सभ्य मानव जगत को आदिम युग के जंगलीपने की ओर ढकेल देता है,और स्त्रियोंको उपभोग की वस्तु समझनेवाली ,जंगली कलुषित ,असभ्य भावना का शिकार बनाता है। यह एक व्यसन है। इससे मुक्त कर समाज को नये स्वस्थ व्यसनों की ओर ले जाना भी सफाई अभियान का एक कार्य होना चाहिए। मनोरंजन के स्वस्थ स्वरूप ,नाट्य ,सत्साहित्यऔर अन्य ललित कलाओं कीओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया जा सकताहै। इन्हें प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
–देश के सम्यक विकास के लिएस्वच्छता अभियान के तहत स्वच्छ आर्थिक तंत्र, स्वच्छ राजनीतिक तंत्र और स्वच्छ मानस तंत्र के समावेश की नितान्त आवश्यकता है। हम सबों को इस दिशा में प्रयत्नशील होने की भी उतनी ही आवश्यकता है।

आशा सहाय।7-1-2017

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