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समस्याएँ-डोकलाम और राम रहीम

चंद लहरें
चंद लहरें
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डोकलाम विवाद चीन और भारत दोनो देशों के द्वारा कूटनीतिक तौर पर सुलझा लिए गए हैं। ऐसा दावा दोनों ही दे श कर रहे हैं।सेनाएँ पीछे हट गयी हैं। पर चीन पूरी तरह वहाँ से नहीं हटेगा । उसकी गश्त जारी रहेगी।यह उसकी विवशता ही थी। उसे ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी करनी थी। दुनिया के सामने एक मंच पर अपनी शांतिप्रिय निष्पक्ष छवि प्रस्तुत करनी थी।ब्रिक्स में मेजबान के यहाँ मेहमान के रूप में गये भारत को सम्मान देना था।कड़वे सम्बन्धों और बार बार की युद्ध की धमकियों के रिश्ते से मेहमान और मेजबान दोनों की फजीहत हो सकती थी। इस अवांछित स्थिति से बचने का यह एकमात्र उपाय था।यह जनसाधारण का साधारण सा नजरिया है जो अपना कोई महत्व नहीं रखता।राजनीतिक कूटनीति में आर्थिक मोर्चे के फायदे और नुकसान की बातों ने अपना काम किया होगा।निश्चय ही चीन इस स्थिति से असंतुष्ट होगा । उसकी बड़ी बड़ी योजनाएँ बाथित हो जाएँगी । चीन शान्त बैठा नहीं रह सकता।
यह न ही किसी की जीत है न हार।अपने अपने राजनीतिक फायदे के लिएदोनो ने अपनी कूटनीतिक विजय को प्रचारित किया।किन्तु जीत अवश्य ही किसी की हार से जुड़ा प्रसंग होता है।और हार भला किसी ऐसे देश को क्यों स्वीकार्य हो जो अपने में किसी को भी पराजित करनेकी क्षमता रखता हो!अतः कूटनीतिक सफलता प्राप्त करना ही सही अभिव्यक्ति है।चीन की मिथ्यावादिता जग जाहिर है।कहीं ऐसा न हो कि चिढ़ा हुआ देश सारी शर्तें , सारे समझौते भूल जाए और अपनी खुन्नस निकालने की तैयारियाँ करने लगे।चीन की नीति इस सम्बन्ध में पाकिस्तान से मिलती जुलती प्रतीत होती है।
अपनी सफलताओं का प्रचार कर जनता के मतों को अपने पक्ष में करनावर्तमान सरकार की उपलब्धियोंमें कुछ विचारकों ने गिनना चाहा है वह इसलिए किआज का युग ही अपनी उपलब्धियों को गिनाने का युग है । हम जनता के जोड़ घटाव पर ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते परहर कार्य चुनाव को दृष्टिपथ में रखकर ही नहीं बल्कि देशहित को ध्यान मे रखकर करना भीउचित है और यही समय की माँग भी है।अपने दृढ़ मनोबल और निर्णयों के द्वारा युद्ध की गीदड़भभकियों को नजरअंदाज कर बिना डरे डटे रहना भी जनता के मन में भरोसा पैदा करने में समर्थ हो रहा था।
वोट की यह राजनीति अपने को कहीं बहुत प्रचारित करती हैऔर कहीं ऐसे मामलों में चुप्पी साध लेती है जहाँ इसकी आवश्यकता नहीं होती।चुप्पी मौखिक या कार्यकलापों की।अभी रामरहीम केस मे सी बी आई कोर्ट कीलाख चेतावनी के वावजूद भी हरियाणा सरकार उपद्रव होने से नहीं रोक सकी।यह सियासी चाल थी या ओढ़ी हुई असमर्थता जनता भी फैसला कर ही लेती है।आरोप तो यह है कि प्रशासन बहुत सारे मामलों में राम रहीम का आभारी रहा,प्रभावित रहा अतः विरोध मे की गयी कार्रवाईयों मेंविशेष सक्रियता दिखाने से कतरा रहा था।निश्चय ही सरकार अपनी पकड़ उसकी अंधभक्त जनता पर बनाए रखना चाहती थी ।ये कल्पनीन बातें अगर थोड़ी भी सच हैं तोभ्रष्टाचार की लड़ाई ऐसे नहीं लड़ी जाती।
पुनः पूर्व विषय पर आकर यह कहते हुए अच्छा लग रहा है कि ब्रिक्स सम्मेलन मेस्थितियाँ अनुकूल रहीं और हमारे प्रधान मंत्री की बातों को समर्थन मिला।साझा घोषणापत्र में उन आतंकवादीगुटों केनाम भी सम्मिलित किए गए जिनका दंश विशेषकर भारत भुगत रहा है।यहएक बड़ी सफलता मिली कि दोनों देशों के गहरे सम्बन्धऔर शान्ति प्रयासों कीआवश्यकता पर प्रेसिडेन्ट झीं जिनपिंग ने बल दियासाथ ही इसक्षेत्र के दोनो विकासशील देशों को पुनःपंचशील के सिद्धांतों के अंतर्गत मैत्री पुष्ट करने की आशा व्यक्त की।पर चीन से पंचशील कोपुनर्जीवित करने की आशा व्यर्थ है। पुनःधोखा खानेकी सम्भावना अधिक।
ब्रिक्स के साझा घोषणापत्र के दबाव में अब शायद चीन पाकिस्तान पोषित और समर्थित आतंकवादियों की सुरक्षा के लिए आगे नबढ़े और अपने पूर्व निर्णयों पर पुनर्विचार भी करे।पर चीन के सम्बन्ध में निश्चित तौर पर कुछ भी कहना कठिन ही है।आतंक के विरुद्ध लड़ाई मेंब्रिक्स केदेशों का एकजुट होना ,सकल्प लेना,बड़ी बात है।
कश्मीर में आतंकविरोधीलड़ाई मेंनित्य ही भारतीय सैनिकों की कुर्बानी चढ़रही है।आतंकी मारेभी जा रहे हैं पर पूर्ण सफलता अभी नहीं मिली है।
ये तो सीमाओं की बातें हैं पर देश के अन्दरजो एक राम रहीम के नाम से आतंक उभर रहा था–इनसाँ केनाम से संबलित हो हर तरह की गैर इंसानियत के कार्य करना ,रेप, हत्याएँ नपुंसकीकरण आदि के कार्य -तो सामने आ ही रहे हैं साथ ही हथियारों का जखीरा प्राप्त होना मानों युद्ध की तैयारी करने के समान ही था।न जाने कितने देशविरोधी गतिविधियों का आश्रयस्थल यह डेरा और डेराप्रधान एक और खालिस्तान समर्थक– देश के विभाजन का षडयंत्र रचता सा प्रतीत हो रहा था।कितने आश्चर्य का विषय है कि इतनी लम्बी अवधि तक इसके कारनामों को नजरन्दाज किया जाता रहा और इसे छूटें दी जाती रहीं। अब सारी खोजबीन जारी है।किन्तु परम आश्चर्य का विषय है कि हमारे देश मे धर्म के नाम पर पाखंड और देशद्रोह के कार्यक्रम पनपते रहतेहैं और हम अंधे समर्थक आसानी से वेवकूफ बनते रहते हैं। इस अन्ध आस्था मेंबड़े बड़ेसम्भ्रान्त नागरिक,, पदाधिकारी, नेतागण बेमोल गुलाम बन जाते हैं।यह मन में व्याप्त भय भी होता है जो इन्हें किसी प्रकार का साहसिक कदम उठाने से रोकता है।यह प्रच्छन्न आतंक था जिसके साये में नागरिक ,पदाधिकारीगण ,सरकारी कर्मचारीगण शायद सभी जी रहे थे,विरोध का स्वर नहीं निकाल पा रहे थे।पर ऐसे रोगों से समाज को मुक्त करना भी आवश्यक है।
राम रहीम को सजा मिल गयी।.पर उसके कारनामों के भेद खुलने अभी बाकी हैं।और उसके साथ जुड़े लोगों की आस्था का दुष्प्रयोग कर बनाए साम्राज्य को ढहाना अभी शेष है।पतन तोहो गया पर ऐसे लोग सिर उठाते ही कैसे हैं यह प्रश्न तो बना ही रहेगा।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता ऐसे ऐसे धर्मसंकटों को पालना और समाप्त करने की आदी तो हो गयी है पर किसी भी धार्मिक संगठन पर आरम्भ से ही सतर्क निगाह रखने की आवश्यकता भी है।

आशा सहाय 5- 9- 2017

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