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देश की और इर्द-गिर्द की स्थितियां

चंद लहरें
चंद लहरें
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ब्रिक्स सम्मेलन की प्रतिक्रिया ने पाकिस्तान को ऐसे बोल बोलने पर विवश कर दिये हैं जिसमें देश के निर्माण से लेकर अब तक के उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के ही बदल जाने की संभावना दिखाई पड़ रही है। अपनी ही प्रकृति के अन्यतम मित्र के द्वारा साझा घोषणापत्र में उसके द्वारा पालित संगठनों को आतंकी करार दिये जाने से विश्व में पहली बार अपनी लज्जाजनक स्थिति का एहसास होना एक अप्रत्याशित तो नहीं पर अविश्वसनीय प्रतिक्रिया प्रतीत हो रही है। वे कहते हैं कि अतीत में उन्होंने गलतियाँ की हैं और अब आतंकविरोधी कदम उठाने होंगे। इस कथन में कितना दम है, कितना भय और कितनी आशंका, इसे समझने की आवश्यकता है।


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वे कहते हैं कि अगर अब लगाम नहीं लगाई तो शर्मिंदगी झेलते रहेंगे। वे ये भी कहते हैं कि आतंकवाद पर पाक ने कुछ नहीं किया तो किसी ने कुछ नहीं किया और यह भी कि पाकिस्तान अब साफ-सुथरे रास्ते पर चलेगा। विभिन्न सैन्य पदाधिकारियों और प्रशासनिक पदाधिकारियों द्वारा दिये गये उक्त बयानों से न तो उनकी शर्मिन्दगी झाँकती है और न आतंक विरोधी कोई प्रतिबद्धता। बस जैसे चोरी पकड़े जाने के बाद की छटपटाहट झलकती है और वह भी इसलिए कि परम मित्र चीन भी उसके लिए कोई सीनाजोरी नहीं कर सका। किन्तु ये सारी प्रतिक्रियाएँ निश्चित रूप से क्षणिक ही थीं।


एक देश जो रोज ही जम्मू-कश्मीर में सीज फायर का उल्लंघन कर रहा है, उस पर किस तरह भरोसा किया जा सकता है। हम आक्रमण नहीं करना चाहते। यह हमारी नीति के विरुद्ध है किन्तु जबावी कारवाई कर अपने सैनिकों के बलिदानों का बदला तो लेना ही होगा। सच पूछिये तो चीन और पाकिस्तान की शख्सियत ऐसी है ही नहीं कि उन पर विश्वास किया जाय। ठीक आदमी की शख्सियत की तरह देशों की भी अपनी शख्सियत होती है और देर सबेर वह अपनी पहचान के घेरे में आ जाती है। वह कभी पूर्णतः बदल नहीं सकती। हम उसे लम्बी परम्पराओं के जद्दोजहद से उत्पन्न प्रभावों का परिणाम मानते हैं और जैसा कि अनुमान था ब्रिक्स सम्मेलन की तात्कालिक प्रतिक्रियाओं को तत्काल ही विराम लगा और दोनों ही देशों ने पुराने सुर अलापने आरम्भ कर दिये।


शायद इसी स्थिति का अनुमान कर हमारे आर्मी चीफ का कहना कि हमारी सेना को दो मोर्चे पर टकराव के लिए तैयार रहना है, अत्यन्त समीचीन जान पड़ता है। यह तो देश की सीमाओं पर की स्थितियों के अनुमानित तथ्य हैं। देश के अन्दर की स्थितियाँ कुछ कम चिन्ताजनक नहीं हैं। रेलवे में नित्य नयी तरह की दुर्घटनाएँ, जान माल की क्षति से लेकर डिरेलमेंट की। पटरियों से ट्रेन के बोगियों का उतर जाना रेलवे की उस अव्यवस्था की ओर संकेत करता है, जो सुरक्षित यात्रा से जुड़ी है। नित्य अथवा दो चार दिनों के अन्तराल पर होने वाली ऐसी घटनाओं के परिणाम स्वरूप सम्बन्धित केन्द्रीय मंत्री को पद त्याग की पेशकश करनी पड़ी। विभाग बदले गये और नये मंत्री पियूष गोयल के पदभार लेने के पश्चात भी यह समस्या बरकरार रही।


आखिर डिरेलमेंट की वजह क्या रही। रेलवे ट्रैक्स के रखरखाव में कमी। निरंतर निरीक्षण का अभाव और इन अनिवार्य महत्व के विषयों पर दूसरे विषयों को ज्यादा महत्व देना। यह जनता के पैसों का सही इस्तेमाल नहीं कहा जा सकता। अचानक पटरियों के खिसकने धँसने का कारण का पूर्वानुमान भी किया जा सकता था। पर हमारे देश में कार्यसंस्कृति का अभाव है। हम कार्यों को अपने अहंकार मान-अपमान से जोड़कर देखना चाहते हैं।


कुछ जानकार व्यक्तियों के द्वारा की गयी टिप्पणियों के अनुसार रेलवे में उच्च योग्यता वाले लोगों की भर्ती निम्न श्रेणी के कर्मचारियों के रूप में होना भी एक बड़ा कारण है और पदाधिकारियों की उनसे काम न लिए जाने की अक्षमता भी। इससे कार्य प्रभावित होते हैं। वैसे रेलवे स्टेशनों की कुछ सुथरी साफ स्थिति को देख सन्तोष भी होता है। कुछ कोचों में भी यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखा गया है। पर पीने के पानी की सही व्यवस्था का अभी भी अभाव है। पर इन सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा सुरक्षा और रेलवे ट्रैक्स की सम्पूर्ण देखभाल होना चाहिए, जिसकी अल्प अनदेखी भी दुर्घटनाओं का कारण बनती है। सुन्दरीकरण के कार्यक्रम को समानान्तर रूप से चलना ही चाहिए, किन्तु यात्रियों के प्राणों से दुश्मनी हम मोल नहीं ले सकते।


देश के अन्दर होने वाले विभिन्न हादसे सम्पूर्ण राष्ट्र को कभी कभी झकझोर देते हैं, बोलने को विवश करते हैं। विद्यालयों में बच्चे सुरक्षित नहीं। बड़ी-बड़ी शैक्षिक संस्थाएँ जो प्रबंधन सुरक्षा और आधुनिकतम शिक्षा के नाम पर अभिभावकों से बड़ी बड़ी राशि वसूल करती हैं, वे बच्चों को सुरक्षा नहीं दे पातीं। उनके विद्यालयों की बड़ी श्रृंखलाएँ होती हैं, जिम्मेदार प्रबंधन होता है पर उनमें सुरक्षा की दृष्टि से कई खामियाँ होती हैं, जिसे अपने चाकचक्य से ढंक देना चाहते हैं। आधुनिक युग की इस सोच ने व्यक्ति को गौण कर दिया है। वस्तु और सम्बन्धित चाकचक्य को विशेष प्राधान्य। जबकि विद्यालयों के केन्द्रबिन्दु में सिर्फ छात्र, उनका विकास, उनकी सुरक्षा ही होना चाहिए।


गुरुग्राम के रेयान विद्यालय में एक सात वर्षीय छात्र की वाॅशरूम मे नृशंस हत्या सारी व्यवस्था की पोल खोल देती है। इससे मतलब नहीं कि हत्या किसने की कंडक्टर ने, किसी अपने ने, किसी बाहरवाले ने या किसी गहरे साजिश ने। बात महत्व की यह है कि वे विद्यालय परिसर में ऐसे स्थानों पर बिना किसी की जानकारी के प्रवेश कैसे कर जाते हैं। इतनी बड़ी व्यवस्था की डींग हाँकने वाले विद्यालय के शौचालय के स्थान की बाउँन्ड्री कैसे टूटी होती है और उसमें छात्रों के अलावा दूसरे लोगों को शौच की अनुमति कैसे मिलती है। सबसे बड़ी बात कि एक सात साल के बच्चे को वहाँ ले जाने के लिये किसी मेड का होना क्यों आवश्यक नहीं समझा जाता है। आधुनिक व्यवस्थाओं में सीसीटीवी का होना भी आवश्यक माना जाता है तो उसको भी निरंतर कार्य करना चाहिए। एक साथ ये सारी खामियाँ किस तरह की घटनाओं को अंजाम दे सकती हैं और विद्यालयों के प्रति अपने सम्पूर्ण भरोसे को तोड़ सकती हैं। इसकी यह घटना और प्रतिक्रियाएँ स्पष्ट प्रमाण हैं।


अगर कंडक्टर ही अपराधी है तो उसकी इस मनोवृत्ति का कारण नहीं समझ आता। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ने यौन शोषण से इन्कार किया है और ड्राइवर ने उसकी शान्त प्रकृति की गवाही दी है, तो क्या किसी दबाव में आकर उसने जुर्म कबूल कर लिया। अगर ऐसा है तो पूरी खोजबीन की आवश्यकता है ही। इतना तो तय है कि बच्चों के विद्यालय में नियुक्तियों में स्वस्थ मानसिक स्थिति का भी प्रमाण प्राप्त करना चाहिए। चाहे जो हो पर ऐसे बड़े बड़े निजी विद्यालयों का सरकारीकरण कदापि कोई हल नहीं। सरकारी करण कर्मचारियों को अतिरिक्त निश्चिंतता प्रदान करता है और सेवाओं में ढील की बड़ी संभावनाएँ होती हैं, साथ ही इससे जुड़ी राजनीति इसे किस दिशा में ले जाएगी कहना संभव नहीं है।


अपराधों को घटाने के लिए सख्ती की आवश्यकता है। निजी विद्यालयों से अच्छे शैक्षणिक माहौल और शिक्षण सुविधाओं की हम अपेक्षा करते हैं। इस दिशा में नये नये प्रयोगों की छूट उन्हें मिलनी चाहिए। आदमी में जब राक्षसत्व का प्रवेश होता है तो उसे देवत्व की ओर मोड़ना इतना सरल तो नहीं पर दंड व्यवस्थाएँ उनमें भय अवश्य पैदा कर सकेंगी। ये ही व्यक्तित्व देश के अन्दरूनी दुश्मन हैं जो पूरे देश को सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलित करते रहते हैं। कुछ शिक्षक शिक्षिकाएँ भी प्रशासन के सख्त नियमों के तहत छात्र छात्राओं पर ज्यादतियाँ करते हैं। अभी अभी एकाध दिन पूर्व प्राप्त खबरों के अनुसार छात्राओं को विहित पोषाक नहीं पहनकर आने पर उन्हे छात्रों के वाॅशरूम मे खड़ा कर दिया। यह कौन सा दंड है। क्या इस तरह उन्होंने अपने मनोविकारग्रस्त होने का प्रमाण नहीं दिया। समुचित कारण की जाँच पड़ताल किए बिना बच्चों को ऐसा दंड दिया जाना कितना अशोभनीय है, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।


अपने राष्ट्र की इन अनीच्छित स्थितियों से हम नित्य जितने अशांत हो रहे हैं, वह तो हमारे सम्मुख है पर विश्व की स्थितियाँ भी कुछ अनुकूल नहीं। वैश्विक स्थितियाँ भी बड़ी तेजी से बदलती जा रही हैं। भारत इनसे अप्रभावित रह जाए, ऐसा संभव नहीं। उत्तरी कोरिया ने हाइड़्रोजन बम का परीक्षण जाने अनजाने करके सबको सकते में डाल दिया है। अमेरिका की नींद हराम हो गयी है। उसके एकछत्र राज्य पर धावा बोला गया है। तनातनी की यह स्थिति किस दिशा का मोड़ लेगी कहना कठिन है। शक्ति परीक्षण को आतुर देशों में होड़ की ऐसी संभावना है। पर आज के बौद्धिक विश्व से युद्ध-महायुद्ध में विश्व को ढकेलने की आशा नहीं की जाती। कूटनीतियाँ असर डालती हैं। इर्द गिर्द की इन सारी स्थितियों से मन चौंकता अवश्य है, पर हर समस्या का बाैद्धिक समाधान है, इस आशा से आश्वस्त भी होता है।

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