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सकारात्मक खबरें

चंद लहरें
चंद लहरें
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धीरे धीरे समाचार पत्रों में सकारात्मक खबरों के प्रति  एक जागरुकता आ रही है कि मात्र नकारात्म क हलचलें ही सामाजिक सत्य नहीं हैं जिन्हें सुबह सुबह के अखबारों में एक जागरूक व्यक्ति पढ़कर   देश- दुर्दशा  का चित्र अपने मन पर अंकित कर ले और दिनभर उन्हीं भावनाओं में जिए  ,उसी की चर्चा करे । इस देश के उन विचारों,दशाओं और व्यवहारों को जानने का हक भी पाठकों को उतना ही है जो एक स्वस्थ प्रयत्न शील आत्मनिर्भर मनोदशाओं वाले निरंतर विकासशीलदेश की छवि प्रस्तुत करते हैं। जो निष्पक्ष और भेद भावहीनता वाले सामाजिक सत्य की वकालत करते हैं।मात्र नकारात्मक खबरें ,आपराधिक मनोदशाओं से युक्त खबरें मन मे आक्रोश और विद्रोह की भावना उत्पन्न करती हैं, निराशा के भाव से भर देती हैं और तब लोग दिनभर देशकाल की बुराइयाँ करते नहीं थकते।सकारात्मक खबरे मन में उर्जा का संचार करती हैं।खासकर उनमें जो निराशा के अंधकार में खुद को फँसा महसूस करते हों ,सोचते हों कि कहीं कुछ नहीं हो सकता,मैं असहाय हूँ,कौन करेगा मेरे लिए कुछ—ऐसी भावनाओं से दिनरात ग्रस्त रहते हैं।

सामाजिक समरसता उत्पन्न करने की हम कोशिश करना चाहते हैं पर दिनरात एक दूसरी कम्युनिटी पर कीचड़ उछालते ही  रहते हैं।हमें न किसी की सदाशयता पर विश्वास होता है न भरोसा । एक संशय का माहौल बना रहता है। किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस देश का माहौल काफी बदल चुका है  इस बात को सोंचने के लिए एक दिशा प्रदान की एक अखबा र नेध्यान आकर्षित किया,- जिसने छापा कि आगरा के एक मदरसे में विगत करीब दस वर्षों में मात्र मुस्लिम छात्र ही नहीं बल्कि हिन्दु और और अन्य धर्मों और समुदायों के छात्र भी पढ् रहे हैंऔर वहाँ धार्मिक शिक्षा नहीं बल्कि आधुनिक जीवन के लिए आवश्यक विषयों की शिक्षा दी जाती है।कोई भाषा उनपर थोपी नहीं जाती। लोग वहाँ अपने बच्चों को निःशंक होकर पढ़ाते हैं। यह पढ़कर मन की आह्लादक वृति का अनायास प्रसार हो जाता है।बात मदरसों की है जहाँकी भाषा सम्बन्धी कट्टरता और मजहब से सम्बन्धित पाठ्यक्रमों की कट्टरता पर अभी हाल तक सवाल उठाए गये ,जिन्हों ने राष्ट्रगान नहीं गाए जाने की बातें कहीं और वन्देमातरम् नही कहने के कारण तीव्र आलोचना के शिकार हुए।क्या उपरोक्त समाचार आशा की किरण जाग्रत नही करती!

सकारात्मक खबरें और सकारात्मक प्रयासों  सहृदय जगत को सन्तुष्ट करते हैं।स्वपोषित संस्थाओं  के द्वाराभावनात्मक एकता के लिए किए गए ऐसे प्रयास वन्दनीय हैं। इसी सन्दर्भ में एक और सकारात्म खबर पढ्ने को मिली कि तिरंगा परिवार ने यह जाहिर किया है कि वे यहीं रहेंगे और वन्देमातरम् भी गाएँगे।  यह मुस्लिम समुदाय की संकीर्ण सोच परउनके द्वारा ही  किया गया एक प्रहार ही है।  सकारात्मक प्रयासोंको हमें जगह देनी चाहिए।राम मन्दिर विवाद को न्यायालय के बाहर सुलझाने के प्रयास मे अगर श्रीश्री रविशंकर ने पहल करने की सोची तो वह स्वागत योग्य होनी चाहिए थी । पूर्ण समाधान नहीं भी मिलने पर मन के कलुष को धोने के लिए यह एक सकारात्मक प्रयास ही था।पहले से ही विरोध कर देना समुचित नहीं कहा जा सकता।

कुछ दिन व्यतीत हो गए पर गिरिराज सिंह का यह कहना कि सिया और सुन्नी दोनों कोटि के मुस्लिम समुदायों को धीरेधीरे इस विवाद के समाधान की दृष्टि से आगे बढ़ना चाहिए।वे हिन्दु संस्कृति से पूर्व परिचित हैंऔर राम मन्दिर को अयोध्या में ही बनना चाहिए ,यह उन्हें अवश्य  समझ में आता होगा।हाँ ,यहाँ के सभी मुसलमानों के सम्बन्ध में यह कहदेना कि वे बाबर की संतान नहीं, उनके पूर्वज यहीं के निवासी हैं—वस्तुतः एक कदम आगे बढ जाना है,जिसका सम्पूर्णतः समर्थन करना कठिन कार्य है।पर राम मन्दिर निर्माण में ईंट  डालने जैसी सहभागिता का आह्वान  नम्रता से बढाया गया सकारात्मक कदम प्रतीत होता है।

उपरोक्त बातो को छोड़ भी दें तो देश के विकास के विभिन्न क्षेत्रों मे लोगों की जागरुकता के बहुत सारे उदाहरण ऐसे मिलेंगे जिन्हें अगर समाचारपत्रों के माध्यम से प्रकाश में लाने की कोशिश की जाती है तो वे लोगों में आत्मविश्वास  और स्वावलंबन की भावना भरते हैं जिसकी इस देश की वहुत सारी समस्याएँ समाप्त हो सकती हैं।हंटरगंज की एक खबर के अनुसार यहाँ के लोगों ने बंजर में फसल उगाने के लिए   पंद्रह सौ फीट की उंचाई पर लूटा और फटहा गाँव के लोगों के द्वारा( झारखंड)-उबड़ खाबड़ पहाड़ को काटकर ,उसे समतल कर वहाँ खेती कर धान गेहूँ मक्का और सब्जियाँ उगायी जा रही हें।पहाड़ को काटकर सिंचाई पैन बनाया गया। बरसात के पानी कोजमाकरएक आहर बना कर पैन के सहारे उसमें  पानी जमा कर सिंचाई का कार्य शुरु किया। सरकार से  उन्हें इस कार्य में कोई मदद नही मिली।साहस औरर पुरुषार्थ से भरा यह कार्य क्या लोगों को कुछ ऐसाही करने की प्रेरणा नहीं देगा।? बहुत सारी  समस्याएँ कुछ ऐसी ही होती हैं जिनके समाधान के लिए सरकारी प्रयासों पर आधारित होना समय बर्बाद करने एवं मनोनुकूल परिणाम नहीं मिलने जैसा होता है तब अकेले अथवा संगठित रूप से स्वयम प्रयास करना अधिक फलदायक होताहै।

—–सबसेअधिक सकारात्मक प्रयास करने की दिशा में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से पैंतालीस किलोमीटर दूर एक पुलिस चौकी में किया जा रहा है जिसकी खबर आज अखबार में मैने पढ़ी ।पुलिसथाने मे  पथ से भटकते दिशाहीन युवकों की पुलिसकर्मी क्लास लेते हैं और वह भी प्रोफेशनल क्लास।आसपास के युवा वहाँ पढ़ने आते हैं।भटकते बच्चों को दिशा देने के लिए –आओ सँवारें आनेवाला कल – के नाम से उन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत की है।कार्यक्रम की सफलता इस बात से स्पष्ट होती है कि जिज्ञासु छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है। अखबार के अनुसार बिरझोर चौकी के प्रशिक्षु  एस आईअहमद निजामी ने बताया कि मार्गदर्शन केअभाव मे पढे लिखे लड़के भटक रहे हैं तो उन्होंने यह निर्णय लिया।थानें में लाइब्रेरी भी है। क्या यह प्रेरणादायक प्रसंग नहीं है?कश्मीर में भी ऐसे प्रयत्न वहाँ सेनानायकों ने किए।

वस्तुतः ये ऐसे प्रसंग  है जिसे पढ़कर महसूस होने लगता है कि दुनिया अभी भी उतनी ही संवेदनशील है। यह तो हम निराशावादी हैं कि सर्वत्र बुराइयाँ ही नजर आती हैं। हम अपने विश्वास को मरने नदें।

आशा सहाय

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