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परिवर्तित मानसिकता की हर कहीं आवश्यकता है——

चंद लहरें
चंद लहरें
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31 दिसम्बर2017को यहाँ दुबई के एक समाचारपत्र गल्फ न्यूज   में प्रकाशित भारत के एक खबर ने मन को इस दिशा में सांत्वना देने का प्रयास कियाकि भारत के कुछ स्वयंसेवी लोगों के प्रयास ही उनका उत्थान कर सकते हैं जिन्हें हम सदैव से दलित ,पिछड़े और कुचले की संज्ञा देते आए हैंऔर उनके पुनरुद्धार के नाम पर राजनीति की रोटियाँ सेंकते आए हैं।विशेषकर नारियों के संदर्भ में अभी भी सशक्त कदम नहीं उठाए जा रहे।वे पुरुषों की दया पर अबतक छोड़ी जा रही हैं।मैने वह खबर जब पढ़ी राष्ट्रपति से पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त सुधा वर्गीज, एक सामाजिक कार्यकर्त्री के प्रयासों नेपटना क्षेत्र के दलित स्त्रियों के उत्थान के लिए वूमेन म्यूजिक बैंन्ड तैयार करने का प्रयास किया जो आज पुरुषों की प्रतिस्पर्धा मेंसम्मानजनक स्थिति में है,जिसे पूर्ण पहचान मिली और इस तरह ये स्त्रियाँ करीब तीस से पचास हजार तक की मासिक आय प्राप्त कर रही हैं तो मन को आह्लादक विस्तार मिला।

दलितों के लिए भाषणबाजी निरंतर होती रही है।चुनावों के समय विरोधीपक्ष के हाथों का यह एक महत्वपूर्ण हथियार बनता रहा है,बल्कि इस प्रयोजन से उन्हें मानसिक रूप से पंगु और दयनीय बना कर छोड़ा जाता रहा है।किसी ने उनके विकास का सही यत्न नहीं के बराबर ही किया।ये स्त्रियाँ घर के कामकाजऔर खेतों में मिट्टी कोड़ने जैसे कार्यों से ज्यादा महत्व की नहीं मानी जातीं। पर,  सुधावर्गीज ने  इन्हें म्यूजिककल बैन्ड बनाने के लिए प्रेरित कियाऔर आगेबढ़ने को सन्नद्ध भी।अक्षमताजनित उनका प्रारंभिक विरोध उचित भी था क्योंकि  वे निरंतर पुरुषप्रधान  मानसिकता से उत्पन्न विरोधी साजिश की शिकार रही हैं। पर उनकी लीडर सविता देवी कहती हैं कि  वे  अब इरादों मे सशक्त हो रही हैं, पुरुषों को चैलेंज दे रही हैं। नये नये धुनों पर प्रयोगकर स्वागतयोग्य कार्य कर रही हैं।इसकी प्रेरणा उन्हे दक्षिण भारत मेंकुछ पिछड़ी जातियों द्वारा संगीत कार्यक्रम पेश करते देख मिली। विशेषकर पटना जैसे  क्षेत्र – जहाँ उनकी समस्याएँ बढ़ा चढ़ाकर पेश की जाती रही हैं,को उन्होंने अपना प्रयोगक्षेत्र बनाने की सोची।

इस तरह के सकारात्मक प्रयोग ही उनके सामाजिक एवम् आर्थिक जीवन कोनयी पहचान और नया सम्मान दे सकते हैं।अगर हम इसे सम्पूर्ण राष्ट्र के नारी सशक्तिकरण की दृष्टि से देखें तब भी यह एक सशक्त प्रयोग है।

वस्तुतः दलित कही जानेवाली स्त्रियों में स्वाभिमान की भावना जागृत करना अधिक आवश्यक है।स्वावलंबन, पुरुषों पर अधिक निर्भरता छोड़कर सम्मानजनक ढंग से अर्थोपार्जन की राह दिखाने हेतु लिया गया यह उत्कृष्ट कदम है।

इन्हीं समाचारों से मिला एक दूसरा संदर्भ, जिसपर ध्यान तो जाता रहा है,किन्तु जिसे स्पष्ट करने में किंचित हिचकिचाहट  इसलिए होती है कि पाकिस्तान को आतंकियों का गढ़ हम  मानते रहे  हैं औरउसके इरादे हमारे प्रति सदैव संदिग्ध श्रेणी में आते  हैं और उसके सैन्य प्रधानों की गतिविधियाँ किसी भी प्रकार काश्मीर को भारत से पृथक कर ने को कृत संकल्प सी प्रतीत होती हैं। उनके मन में बंगलादेश का स्वतंत्र हो जाना अभी भी खटक रहा है।अतः निरंतर संघर्ष जारी है।स्थितियाँ आक्रमण प्रत्याक्रमण सी बनती जा रही हैं ।हमारे सैनिक मारे जा रहे हैं और हम उन्हें शहीद का दर्जा देते जा रहे हैं। उनके भी सैनिक मारे जा रहे हैं।अतः किसी भी प्रकार सहानुभूति के विचार तो हमारे मन में नहीं ही  आ पाते। दोनों जगहों की जनता ऩिश्चित ही इससे  अलग अलग ढंग से प्रभावित तो हैं ही।हाँ उनका रवैया हमें आक्रामक लगता ही है।जनता कुलभूषण जाधव के प्रति किए जा रहे उनके व्यवहारों से आक्रोश में है।कुलभूषण जाधव को वे आतंकी मानते हैं प्राणदंड की सजा प्राप्त अपराधी है वह ।हलाँकि  यह मामला अभी विवादास्पद होचुका है ।यहाँ विदेश में, एक समाचार ने कुलभूषण जाधव से मिलने गये उसकी पत्नी और माँ के  साथउनके अधिकारियों ने कुछ अच्छा व्यवहार नहीं किया ,चप्पलें उतरवा लीं ,वापस नही किए, आभूषण और मंगलसूत्र भी उतरवा लिए। आमने सामने बातें नहीं करने दीं और मातृभाषा का प्रयोग नहीं करने दिया,आदि के पीछे पाकिस्तान के इस तर्क को प्रधानता देने की कोशिश की गयी हैकि सुरक्षा के कारणों से उन्होंने ऐसा किया।उसकीमाँ और पत्नी को यह सब अत्यन्त बुरा लगा क्योंकि मानवीयता की उससे आशा की जाती रही थी। अन्तरराष्ट्रीय नियमों के तहत मिलने देने मे मानवीयता की कल्पना ही कैसे कर ली गयी –यहीआश्चर्य का विषय है।विशेषकर मंगलसूत्र का उतरवा लिया जाना उन्हे अमंगलसूचक लगा होगा होगा इस अमंगल की धमक ने संवेदनशील भारतीयों के मन मेंविरोध की स्वाभाविक तीव्र भावना भर दी। यहाँ के अखबार इस बात पर  बल देते हैं कि सुरक्षा कारणों से ऐसा किया गया। हम पर निर्भर करता है कि आगे बढ़कर उनके दृष्टिकोण से हम भी ऐसा सोचें कि क्या यही संभव नहींहै?वह इसलिए भी कि अभी अभीउन्होंने जिन भारतीय मछुआरों को वापस लौटाया हैउन्होंने उनके द्वारा किए गए अच्छे व्यवहार की खबर दी है।इनामों और उपहारों के साथ उन्हें लौटाया गया है।यह अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाने के लिए भी किया जाना संभव है।

——इन खबरों के पीछे की विवश मानसिकता को हम समझ नहीं पातेक्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पाकिस्तान को दी जानेवाली225 मिलियन डॉलर की राशि  इसलिए रोक दी है कि उसकी जमीं पर आतंकी अब  भी पल रहे हैं।पाकिस्तान उनपर कोई कारवाई नहीं कर रहा।.अभी दिनाँक 1-1-18 कोप्रकाशित एक खबर के अनुसार प्रेसिडेंट ट्रम्प नेपाकिस्तान पर निरंतर छलने और झूट बोलने का आरोप लगाया है। (यह आरोप तो हम भी उसपर लगाते हीरहे हैं।)अफगानिस्तान में उसकी तथाकथित हार के मद्देनजर पुनः उसपर आतंकियों को पालते रहने और उसके द्वारा आतंकरोधी गतिविधि में इस्तेमाल के लिए दी गयी राशि के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया है।पाकिस्तान ने ट्रम्प को करारा जबाव देते हुए कहा है किवह वहभी उसके नो मोर एड का जबाव -नो मोर एड- से ही देगा जिसकी उसने पहले ही घोषणा कर दी है।आखिर यह साहस पाकिस्तान को किसकी सहायता से प्राप्त हो रहा है,यह विचारणीय है।क्या चीन उसकी सहायता को तत्परहै?

पाकिस्तान के साथ हमारे सम्बन्ध सुधरें यह सभी देश चाहते हैं।निकटतम पड़ोसी होने के कारणभारत केलिए यह और भी महत्वपूर्ण है।भारत के हृदयप्रदेश की शान्ति इसपर निर्भर करती है।हर बार सीमापर कटते मरते सैनिकों के साथ मन का द्वेष बढ़ता ही जाता है।द्वेष तो द्वेष को ही जन्म देता है। कटुतमम होते जाते  इस सम्बन्ध को  विश्वासों की आवश्यकता है,और, आज की परिस्थिति में हम विश्वास नहीं करसकते।कश्मीर प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है.।  एक समाधान के लिए त्वरित कारवाई की आवश्यकता हैजिस और हमारे देश का ध्यान जाना आवश्यक है।अन्यथा कुलभूषण जाधव जैसी घटनाओं की पुनरावृति होती ही रह सकती है।हमे कुलभूषण जादव कीस्थिति के प्रति  तुरत फुरत प्रतिक्रियाओं की जगह दूरगामी परिणाम जनित प्रतिक्रियाएँ देनी चाहिए।

पुनः देश की अन्दरुणी स्थितियों को सुधारने के लिए अपनी सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।लोगों के बीच तर्कशक्ति से युक्त विवेक जाग्रत करने की आवश्यकता है।अध्यात्मिकता मन की शान्ति के लिए आवश्यक है पर नकली अध्यात्मिक चेहरे वाले बाबाओं का संसार लोगों को ठग रहा है।उन्हें स्वार्थपूर्ति का साधन बना रहा है।दो बड़े बड़े बाबाओं के कुकृत्यों के माध्यम से यह संदेशित हो ही रहा है।सच्चा डेरा सौदा और नोएडा स्थित आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के बाबा नरेन्द्र देवके सारे कार्य संदेहास्पद लगते हैं।नाबालिग अथवा बालिग लड़कियों का इस जाल में फँसजाना देश की नारियों की ऐसी मनःस्थिति का परिचायक हैजो किसी न किसी  सामाजिक प्रताड़ना केफलस्वरूप है। यह स्थिति अवश्य ही चिंताजनक है।

हम महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं और हर जगह उनकी सुरक्षा के लिए किसी पुरुषपर निर्भरता की कामना करडालते हैं—यह उस मार्ग में बाधक है।ट्रिपल तलाक मुस्लिम महिलाओं के सिर पर लटकती ऐसी तलवार थी  जिसके भय से पुरुष के अत्याचारों को सहन करने को वे विवश थीं ।किसी अति महत्वहीन मुद्दे पर भी वे ऐसे तुरत फुरत तलाक के जरिये वे दंडित की जा सकती थीं।उच्चतम न्यायालय के निर्देश के आलोक में भारतीय नेतृत्व ने इसे हटाकर इन्हें सशक्तिकरण के मार्ग पर ले जाने का यत्न कियाहै।लोकसभा मे पारित यह बिल धर्म के ठीकेदारों के साथ –साथ विरोधी पक्षों  को भी कदाचित नही  भा सकता।क्योंकि दोनों ही समुदायों को स्वार्थगत कारणों से यह रुचिकर प्रतीत नहीं हो सकता।

इसी दिशामें किये प्रयत्नों मे अपने मन की बात मे प्रधान मंत्री ने उन्हें हज केलिए जाने में पुरुष नेतृत्वकी क्यों आवश्यकता हो ?—इस ओर उनका ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा की है।बिना पुरुष नेतृत्व मे जाने वाली महिलाओं को लाटरी सिस्टम से मुक्ति मिलेगी,  यह प्रलोभन भी दिया गया।वस्तुतः यह एक अच्छा कदम है।भारत में निवास  करनेवाली  मुस्लिम  महिलाएँ समान महिला  विकास से सम्बन्धित अधिकारों का उपभोग क्यूँ न करें धार्मिक तर्कों के बहाने वे क्यों पिछड़ी रहें ,यह सदैव विचारणीय है.।उन्हें महिलाओं का   गरिमामय  स्थान प्राप्त होना ही चाहिए।पाकिस्तान जैसे देश में भीअब महिलाएँ हर क्षेत्र में आगे आने के लिए प्रयत्नशील और मुखर हो रही हैं।एक छोटे से समाचार के अनुसार उनकी जागरूकता उन्हें सशस्त्र सेना मे ब्रिगेडियर पद प्राप्त करने का स्वप्न भी दिखा रही है।गल्फ न्यूज के अनुसार मार्डेन स्थित एक कॉलेज  की महिलाओं को इस क्षेत्र में प्रवेश की इजाज़त मिल सकती है।ये इस कोटि की महिलाएँ हैं  जिन पर घर से बाहर निकलने तक पर बंदिशें थीं। उनका अब यह कहना कि अगर महिलाएँ प्राइम मिनिस्टर हो सकती हैं विदेश मंत्री और स्टेट बैंक की गवर्नर हो सकती हैं तोवह सैन्य टुकड़ी की चीफ क्यों नहीं हो सकतीं? यह स्वप्न एक तेरह वर्षीय महिला का है जो पाकिस्तान की पहली गर्ल्स कैडेट कॉलेज की छात्रा है।

—न केवल मुस्लिम महिलाओं के संदर्भ में यह सत्य है  बल्कि ये बातें खुलती हुई समस्त  महिला मानसिकता से जुड़ी हैं।अतः उनके विकास के लिए जितने भी कदम उठाए जाएँ,कम होंगे पर हमेशा स्वागतयोग्य भी।

—महिला सशक्तिकरण के इन मूलभूत सिद्धांतों को न समझनेवाला समाज ही स्त्रियों को इन बाबाओं के चक्कर में ढकेल देता हैजहाँ सामाजिक असंतोष से त्राण पाने के लिए वे अध्यात्म का सहारा लेना चाहती हैं,चाहे वे पिंजरे में बन्द करके ही वहाँ क्यों न रखी जाएँ।  अध्यात्मिकता अच्छी चीज है पर पोंगापंथी का तिरस्कार हर स्तर पर  अनिवार्य  है।

—बार-बार यह दुहराने में कोई हर्ज नहीं कि नारी देश की आधी आबादी हैऔर उसके सशक्त हुए बिना देश की सशक्ति की हम कल्पना नहीं कर सकते।आर्थिकऔर सामाजिक रूप से उच्च,निम्न मध्यम वर्ग ,निम्न वर्गअथवा तथाकथित दलित वर्ग की ही स्त्रियाँ क्यों न हों, पहली सीढ़ी उन्हें स्वावलंबन की देनी होगी।जिस पर आरूढ़ हो वे स्वयं जीवन का सही  अर्थ समझने लगेंगी।सच तो यह है कि देश के विकास के लिए चलाए सारे कार्यक्रम इन महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ ही पूरे होंगे।

—किन्तु हम अपने भारत की उस राजनीति को क्या कहें जो मात्र वोटों के लिए ही होकर रह गयी है।वह हर उस सुधार कार्यक्रम पर अंकुश लगा देने पर विवश सी प्रतीत होती है जो महिलाओं की स्थिति में सुधार ला सकें।विरोध करना उनका अधिकार है, प्रश्न उठाना भी, किन्तु देशहित को ध्यान में रखते हुए।राज्य सभा में ट्रिपल तलाक के बिल को लटकाने को काँग्रेस और विरोधी पार्टियाँ इसलिए कटिबद्ध हें कि  मुस्लिम पुरुष वोट उनसे जुड़े होंगे और धर्मभीरू स्त्रियो के मत भी जुड़ेंगे।साथ ही इस के राज्यसभा से पास हो जाने पर  निकट भविष्य में होनेवाले लाभ से सत्तासीन पार्टी वंचित हो सके। उसके पूर्व दिनांक 1 -1-2018 को घटित दलित मुद्दे पर सरकार के वक्तव्य की माँग करती है जिसमे जनसभा में तथाकथित भगवा झंडे का प्रदर्शन करते हुए आर एस एस अथवा हिन्दू अतिवादियों को पत्थरबाजी में लिप्त पाया गया।वस्तुतः झंडे लेकर ही सभा का विरोध और स्टोनपेल्टिंग एक गढ़ा हुआ प्रकरण भी हो सकता है क्योंकि ऐसे हथकंडे इसदेश के लिए नये नहीं  हैं। बिना परीक्षण के निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जासकता।किन्तु एक वक्तव्य की  अपेक्षा तो है। एक दूसरा मुद्दा जो इसमार्ग की बाधा बनाकरवे उठाना चाहते हैंवह महिला आरक्षण को लेकर है। इस प्रकार एक मनोवैज्ञ5निक पकड़ वह बनाना चाहते हैं। वस्तुतः यहमुद्दा कितनी महिलाऔं को भी प्रिय  है,कहना कठिन है।आरक्षण समाज को पंगु बनाने औरआत्माभिमान का हनन करने वाली प्रक्रिया है।पूरे विश्व की महिलाएँ सम्मान के साथ जीना चाहती हैं। उनमें प्रतिभा की कमी नहीं बस उसे पहचान मिलनी चाहिए।महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने की  आवश्यकता है,, आरक्षित नहीं।

—देश नये वर्ष में प्रवेश  कर चुका है पर समस्याएँ ज्यों  की त्यों  हैं ।हमें अपनी मानसिकता को विकासशीलता से जोड़ने की आवश्यकता है।परिवर्तित मानसिकता की हर कहीं आवश्यकता है।

आशा सहाय 4  -1 –2018   ।

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